“जय श्री राम” हम सभी ये नाम दिन में कई बार लेते हैं। भगवान राम की रोज पूजा भी करते हैं। रामायण से जुड़ी उनकी पूरी कहानी भी हमारे रोम-रोम में बसी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान श्रीराम कैसे मर्यादा पुरुषोत्तम राम बने? आखिर ऐसा क्या हुआ जो उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाने लगा? इसके पीछे की वजह बड़ी दिलचस्प है। जब आप इसका कारण जानेंगे तो आपकी भी लाइफ बदल जाएगी। आपके जीवन में एक बड़ा बदलाव होगा। आप बेहतर इंसान बन जाएंगे। इसलिए यदि आप भगवान श्रीराम के सच्चे भक्त हैं तो वीडियो के अंत तक बने रहिए। क्योंकि आज हम भगवान राम से जुड़े उस पहलू के बारे में बात करेंगे जिसे 99% भक्त नजर अंदाज कर देते हैं।
श्रीराम, भगवान विष्णु के सातवें अवतार माने जाते हैं। उन्होंने त्रेता युग में रावण का संहार करने के लिए धरती पर अवतार लिया था। लेकिन वह सबके फेवरेट इसलिए नहीं बने कि वह एक प्रसिद्ध राजा के पुत्र थे या उनका जन्म एक प्रसिद्ध कुल में हुआ था। बल्कि सभी उन्हें इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि श्रीराम एक विशिष्ट व्यक्तित्व और उत्तम गुणों वाले व्यक्ति थे। वह हम सभी के लिए एक आदर्श व्यक्ति थे जिसके गुणों को जीवन में अपना कर हम भी एक बेहतरीन इंसान बन सकते हैं।
जब भगवान राम बालक थे तब उनमें आदर, सम्मान, अभिवादन व शिष्टाचार का संस्कार था। वे सदैव माता-पिता और गुरुजनों को शीश नवाते थे। बदले में उनका आशीर्वाद और स्नेह भी पाते थे। एक बड़े राजा के बेटे होने के बावजूद वह 14 वर्ष के लिए वनवास गए। वनवास जाते समय उनके मुख पर दुख का एक भाव तक नहीं था। उन्होंने अपने पिता दशरथ के वचन की लाज रखी। माता कैकेयी की 14 वर्ष वनवास की इच्छा को सहर्ष स्वीकार किया और पिता के दिए वचन को निभाया।
उन्होंने ‘रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाय पर वचन न जाय’ का पालन किया। कभी माता-पिता और गुरु की आज्ञा का उलंघन नहीं किया। कभी अपने मुख पर ‘क्यों’ शब्द नहीं लाए। श्रीराम ने अपने जीवन में बहुत कठिन संघर्ष किया, लेकिन इसके बाद भी वे विनम्र बने रहे। मुसीबतों को अवसर में बदलने का विशेष गुण उनमें सदा रहा।
वे सांसारिक मोह माया से परे थे। जब वनवास गए तो उनके चेहरे पर उदासी नहीं थी। वहीं बाद में जब उन्हें राजा बनाया गया तो उनके चेहरे पर खुशी नहीं थी।
राम ने सभी को समान दृष्टि से देखा। कभी किसी से भेदभाव नहीं किया। यही वजह है कि उन्होंने प्रसिद्ध कुल से नाता रखने के बावजूद शबरी के झूठे बेर खा लिए थे। उन्होंने शबरी का भक्ति भाव देखा था, ना कि जाति।
इतना ही नहीं राम ने महाशक्तिशाली होने के बावजूद कभी अपनी शक्ति का दुरूपर्ययोग या दिखावा नहीं किया। जब वह माता सीता को ढूँढने अपनी वानर सेना के साथ लंका जा रहे थे तो बीच में समुद्र ने उनका रास्ता रोक लिया था। श्रीराम चाहते तो एक बाण से पूरा सागर सुखा देते, लेकिन उन्होंने लोक कल्याण के लिए विनम्र भाव से समुद्र से मार्ग देने की विनती की।
माता, पिता और गुरु की आज्ञा का पालन करना, हमेशा विनम्र बने रहना, सांसारिक मोहमाया से दूर रहना और किसी से कोई भेदभाव नहीं करना, ये कुछ ऐसे गुण थे जिन्होंने भगवान राम को ‘मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम’ बनाया।
हम सभी श्री राम को भगवान होने के कारण पूजते हैं। लेकिन क्या सिर्फ मूर्ति की पूजा करना ही भगवान की पूजा करना होता है? इससे बेहतर ये नहीं होगा कि हम भगवान के गुणों की भी पूजा करें। श्रीराम के चरित्र की सकारात्मक चीजों को अपने जीवन में लाएं। यदि आप ऐसा करते हैं तो यकीनन न सिर्फ भगवान श्रीराम के सच्चे भक्त कहलाएंगे बल्कि एक बेहतरीन इंसान भी बन जाएंगे। भगवान राम के गुणों से प्रेरणा लेकर आपका जीवन और भी अच्छा बना जाएगा।
वैसे आपको भगवान राम के ये गुण कैसे लगे और आप इनमें से किस गुण को अपने जीवन में अपनाएंगे? हमे कमेन्ट कर जरूर बताएं। साथ ही राम का नाम लेकर इस वीडियो को अधिक से अधिक शेयर करें। ताकि हर कोई भगवान राम से प्रेरणा लेकर एक अच्छा इंसान बन सके।