जब माधवराव सिंधिया से चुनाव हार गए थे अटल बिहारी बाजपेयी, नतीजे के बाद खूब हँसे थे, जानिये वजह
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और दिवंगत माधवराव सिंधिया की गिनती भारतीय राजनीति के दिग्गजों में होती है. दोनों ही दिग्गजों का व्यक्तित्व ऐसा था कि वे अपने विरोधियों को भी अपना मुरीद बना लेते थे. बता दें कि माधवराव सिंधिया और अटल बिहारी वाजपेयी आपस में चुनाव भी लड़ चुके थे.
माधवराव सिंधिया और अटल बिहारी वाजपेयी साल 1984 के आम चुनाव के दौरान आमने-सामने हुए थे. तब दोनों के बीच हुई टक्कर में ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया जीत गए थे. अटल बिहारी को हार मिली. लेकिन वे हारने के बाद भी खूब मुस्कुराए थे और उन्होंने बताया था कि इस हार के पीछे का कारण सिर्फ उन्हें ही पता है. आइए आपको विस्तार से बताते है कि आखिर बात क्या है.
माधवराव कभी भी कोई चुनाव नहीं हारे थे. उनके सामने जब देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी थे तब भी वे हारे नहीं और उन्होंने रिकॉर्ड जीत हासिल की थी. साल 1984 का लोकसभा चुनाव सिंधिया ने राजीव गांधी के कहने पर ग्वालियर सीट से लड़ा था जबकि पहले चर्चा थी कि वे गुना-शिवपुरी संसदीय सीट से चुनाव लड़ेंगे.
दूसरी ओर अटल बिहारी वाजपेयी तब कोटा संसदीय सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी में थे हालांकि बाद में उन्हें सिंधिया के सामने ग्वालियर सीट से उतारा गया. पूर्व पीएम ने कहा था कि जब उन्हें यह बात पता चली कि सिंधिया ग्वालियर सीट से मैदान में है तो उन्होंने भी इसी सीट से चुनाव लड़ने का मन बनाया.
गौरतलब है कि तब राजमाता और माधवराव सिंधिया के बीच अनबन हो गई थी. दोनों के रिश्ते ठीक नहीं चल रहे थे. दरअसल तब सिंधिया ने जनसंघ का साथ छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया था और सिंधिया के इस कदम से राजमाता बिलकुल भी खुश नहीं थी. जब सिंधिया ने ग्वालियर सीट से चुनाव लड़ने का फैसला लिया तो राजमाता ने भी इसी सीट से चुनाव लड़ने का मन बनाया हालांकि अटल बिहारी ऐसा नहीं चाहते थे. वे नहीं चाहते थे कि सिंधिया परिवार के घर की अनबन लोगों के समाने आए. इस तरह से वे सिंधिया के सामने ग्वालियर सीट से मैदान में खड़े हुए.
साल 1984 का आम चुनाव हुआ और इसमें सिंधिया को करीब पौने दो लाख मतों से शानदार जीत मिली. जबकि वाजपेयी को करारी हार का सामना करना पड़ा. हालांकि हरने के बाद भी चुनाव अटल बिहारी जीत गए थे. हारने के बाद भी वे मुस्कुरा रहे थे. उनके चेहरे पर गम नहीं था बल्कि वे खुश थे.
जब अटल बिहारी से उनके हंसने को लेकर सवाल किया गया था तो उन्होंने कहा था कि, यहां से चुनाव लड़कर मैंने मां-बेटे की लड़ाई को महल तक सीमित रहने दिया. उसे सड़क में नहीं आने दिया. मैं इस सीट से चुनाव नहीं लड़ता तो माधवराव सिंधिया के खिलाफ राजमाता चुनाव लड़ जाती और मैं यही नहीं चाहता था. उन्होंने यह भी कहा था कि, ग्वालियर में मेरी एक हार पर एक इतिहास छिपा हुआ है जो सिर्फ मैं जानता हूं.