आखिर कब है विश्वकर्मा पूजा? जानिए इसका महत्व और पूजा करने की सही विधि के विषय में
ऐसे बहुत से त्यौहार और जयंती है जिनकी अपनी अलग-अलग मान्यता होती है, इन्हीं जयंती में से एक विश्वकर्मा जयंती है, शास्त्रों के अनुसार देखा जाए तो भगवान विश्वकर्मा का जन्म माघ शुक्ल त्रयोदशी के दिन हुआ था, इनको भगवान शिव जी का अवतार भी बताया जाता है और यह दुनिया के सबसे प्रथम वास्तुकार और इंजीनियर माने गए हैं, इस वर्ष 17 सितंबर 2019 दिन मंगलवार को विश्वकर्मा पूजा की जाएगी, विश्वकर्मा पूजा हर वर्ष कन्या संक्रांति को की जाती है, इस दिन फैक्ट्रियों, मशीनों और उद्योगों में पूजा होती है।
ऐसा माना जाता है कि अगर इस दिन विश्वकर्मा की पूजा की जाए तो इससे हमारे कारोबार में खूब तरक्की मिलती है और हमें लाभ भी अधिक होता है, विश्वकर्मा जयंती के दिन विशेष रूप से सभी कलाकार, शिल्पकार, औद्योगिक क्षेत्र से जुड़े हुए लोग इनकी विश्वकर्मा पूजा करते हैं और इस दिन ज्यादातर सभी कारखाने भी बंद रहते हैं इस दिन विश्वकर्मा पूजा की जाती है।
विश्वकर्मा पूजा का धार्मिक महत्व
अगर हम विश्वकर्मा पूजा को धार्मिक दृष्टि से देखें तो यह पूजा ज्यादातर उन लोगों के लिए विशेष मानी जाती है जो व्यापारी, कलाकार, उद्योगों से जुड़े हुए हैं, अगर इस दिन विश्वकर्मा भगवान की पूजा की जाए तो इससे व्यक्ति के व्यापार और कामकाज में खूब बढ़ोतरी होती है और उसके मुनाफे में भी वृद्धि होती है, विश्वकर्मा पूजा करने से सुख समृद्धि जीवन में बनी रहती है, विश्वकर्मा जयंती के दिन विश्वकर्मा भगवान की पूजा करना बहुत ही शुभ माना गया है।
चलिए जानते हैं विश्वकर्मा पूजा विधि के विषय में
विश्वकर्मा जयंती पर भगवान विश्वकर्मा जी की प्रतिमा को मंदिर के अंदर स्थापित किया जाता है और शादीशुदा लोग भी अपनी पत्नी के साथ इनकी पूजा करते हैं, भगवान विश्वकर्मा जी के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यह देवताओं के अस्त्र शस्त्र, महल और आभूषण आदि बनाने का कार्य करते हैं, विश्वकर्मा पूजा के दिन फैक्ट्री, दफ्तर, उद्योगों में जो भी मशीनरी लगी हुई है उसकी पूजा होती है, सर्वप्रथम चावल, फूल, मिठाई, फल, रोली, सुपारी, धूप, दीप, रक्षा सूत्र आदि को विश्वकर्मा जी की तस्वीर पर व्यवस्थित करना चाहिए, इसके पश्चात भगवान विश्वकर्मा जी की प्रतिमा पर अपने सच्चे मन से फूल अर्पित करें।
इतना करने के बाद आप सभी औजारों पर तिलक और अक्षत अवश्य लगाएं और इन पर फूल अर्पित करें, फिर भगवान विश्वकर्मा जी को आप मिठाई का भोग लगाएं, जिस स्थान पर आप भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा कर रहे हैं वहां पर उपस्थित सभी कर्मचारियों और मित्रों के साथ भगवान विश्वकर्मा जी की आरती कीजिए और अंत में सभी लोगों को प्रसाद बांटना ना भूले, भगवान विश्वकर्मा जी की प्रतिमा का अगले दिन विसर्जन करने का भी विधान माना जाता है।
भगवान विश्वकर्मा जी की जन्म की कथा
अगर हम हिंदू धर्म की मान्यता अनुसार विश्वकर्मा जी के जन्म की कथा के बारे में जाने तो ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु जी की नाभि से निकले एक कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई थी, ब्रह्मा जी के पुत्र धर्म हुए थे, धर्म के सातवें संतान वास्तु है और विश्वकर्मा जी का जन्म वास्तु देव की अंगिरसी नाम की पत्नी से हुआ था।