जिनसे फैल रहा है जानलेवा निपाह, उन्हीं चमगादड़ों को हिन्दुस्तान के इस गांव में होती है पूजा
केरल से लेकर हिमाचल प्रदेश तक इन दिनों चमगादड़ों का आतंक है। लोग चमगादड़ों की वजह से निपाह जैसी महामारी का शिकार हो रहें हैं। सरकारी आंकड़ों की माने तो अबतक 15 लोगों की मौत हो गई है। जबकि सैकड़ों की संख्या में लोग बीमार होकर अस्पतालों में भर्ती है। ऐसे में चमगादड़ से डरना लाजिमी है। वहीं दूसरी तरफ देश के एक कोने में बते कई सालों से चमगादड़ों को पूजा जाता है। उनकी हर साल पूजा अर्चना की जाती है। लोग उनको गांव का रक्षक मानते हैं। खुद को उनके साए में सुरक्षित मानते हैं।
बिहार के वैशाली जिले के राजापाकड़ प्रखंड के सरसई गांव में इन चमगादड़ों की पूजा होती है। पेड़ की डालियों पर उल्टा लटकने वाले इन चमगादड़ों को देखकर कोई भी डर जाए। अबतक केरल में इन्ही चमगादड़ों की वजह से जानलेवा निपाह वायरस फैल गया है। वहीं दूसरी तरफ बिहार में लोग इन चमगादड़ों को ग्राम रक्षक देवता मानते हैं। सरसई गांव के तालाब के चारों ओर के पेड़ों पर हजारों की संख्या में चमगादड़ों का डेरा है। सिमड़, बढ़, ताड़ जैसे पेड़ों पर उल्टा लटके ये जानवर दिन में सोते रहते हैं। खुली धूप से बचने के लिए ये अपने पंखों को सिर के चारों ओर लपेट लेते हैं। इनके बसेरे के पास से तीखी गंध आती है और साथ ही ऊपर लटके चमगादड़ों की आवाजें सुनाई देती है।
पंच सरपंच संघ के प्रदेश अध्यक्ष अमोद कुमार निराला की बातों पर यकीन करे तो चमगादड़ इस इलाके के लिए बहुत खास हैं। क्योंकि इससे जुड़ा एक इतिहास का पन्ना इसे खास बनाता है। मामला 1402 से 1405 के बीच का है जब ठाकुरी राजवंश के राजा शिव सिंह ने सरसई गांव में 52 बीघा जमीन पर तालाब खुदवाया था। पानी ठंड़ा रखने के लिए तालाब के चारों ओर पेड़ लगवाए थे। बताया जाता है कि इस गांव में हैजा और कॉलरा जैसी महामारी अक्सर फैल जाती थी। कहा जाता है कि गांवों में महामारी फैली थी तो चमगादड़ों का झुंड आया और तालाब के चारों ओर स्थित पेड़ों पर डेरा बसा लिया। उसके बाद इस इलाके में महामारी फैलना बंद हो गई। स्तनधारी जीव होने के चलते इसे मातृत्व का रूप माना जाता है। रात में उड़ने के चलते लोग इसे मां लक्ष्मी का अंश भी मानते हैं। यही कारण है कि पीढ़ियों से यहां के लोग चमगादड़ को रक्षक मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
सरसई और आसपास के 10 गांव के लोग इन चमगादड़ों को पूज्य मानते है। तालाब किनारे पेड़ों पर आराम कर रहे चमगादड़ों को कोई परेशान कर सकता। गांव में मान्यता है कि अगर कोई चमगादड़ को मारता है तो गांव पर विपत्ति आने लगती है। ऐसा होने पर पूजा कर उन्हें मनाना पड़ता है। इन्हें खाने की कमी न हो इसके लिए गांव के लोग अपने आम, लीची, अमरूद और अन्य फलों के बगीचे के पेड़ों के सबसे ऊपर की डालियों के फल नहीं तोड़ते। ये फल चमगादड़ों के खाने के लिए छोड़ दिए जाते हैं। गर्मी में चमगादड़ों को पानी की कमी न हो, इसके लिए गांव के लोगों ने चंदा इकट्ठा कर मुख्य तालाब के पास स्थित दो तालाब में पानी भरते हैं। इन तालाबों पर रोज शाम को चमगादड़ आते हैं और उड़ते हुए ही पानी पीते हैं।
गांव के लोग सरसई तालाब के सौदर्यीकरण और इसे पर्यटन केंद्र बनने की बाट जोह रहे हैं। सरसई के इस तालाब के चारों ओर चमगादड़ों के बसेरे को लेकर गांव के लोग लामबंद है। गांव के लोगों की मांग है कि इसे पर्यटन केंद्र बनाया जाए। इसके लिए जिला मुख्यालय, वन विभाग, पर्यटन मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय तक से गुहार लगाई गई। पर्यटन मंत्रालय से इसके लिए जिला प्रशासन को पत्र मिला, लेकिन जमीन पर कुछ नहीं हुआ।