लाखों वर्षों से जिंदा ये 2 कबूतरों का जोड़ा, इनके जीवन की कथा है रहस्मयी, जानें विस्तार से
हिंदू धर्म में मौजूद पुराणों में हमें इस बात का वर्णन देखने को मिलता है कि एक बार जब माता पार्वती ने भगवान शिव से इस सवाल को पूछा कि आप अजर अमर है। परंतु मुझे हर एक जन्म के बाद एक नए स्वरूप में धरती पर आकर वर्षो की कठोर तपस्या करने के बाद आपको प्राप्त करना पड़ता है। आखिर ऐसा क्यों.? इसके साथ ही साथ आपके कंठ में जो नरमुंड की माला मौजूद है उसके पीछे की रहस्य क्या है.? माता पार्वती के द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब देने के लिए भगवान शिव ने माता पार्वती को एक एकांत और गुप्त स्थान पर ले जाकर इस कथा को सुनने को कहा। जिससे कि कोई भी प्राणी उनकी अमर कथा को ना सुन सके। अगर कोई प्राणी इस अमर कथा को सुन लेता तो ऐसे में वह हमेशा के लिए अमर हो जाता।
पुराणों की माने तो भगवान शिव ने पार्वती को अमर कथा सुनाने के लिए परम पावन अमरनाथ की गुफा में ले जाकर उन्हें अपनी साधना की अमर कथा को सुनाया। जिसे आज हम अमरत्व के नाम से जानते हैं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान भोलेनाथ ने अपनी सवारी और नंदा को पहलगाम में छोड़ दिया था। इसके साथ ही साथ उन्होंने अपनी जटाओं से चंद्रमा को चंदनबाड़ी में अलग कर दिया और गंगा जी को पंचतरणी में छोड़ने के बाद कंठाभूषण सर्पो को उन्होंने शेषनाग में छोड़ दिया। अपने कंठाभूषण सर्पो को शेषनाग में छोड़ देने की वजह से आज उस जगह का नाम शेषनाग पड़ा।
इन सभी चीजों को छोड़ने के बाद अगले पड़ाव पर भगवान शिव ने अपने पुत्र गणेश को भी छोड़ दिया। जिस स्थान पर भगवान शिव ने अपने पुत्र गणेश को छोड़ा था उस स्थान को आज महागुना के पर्वत के नाम से जाना जाता है। आपको बता दें कि भगवान शिव ने पिस्सू घाटी में पिस्सू नामक कीड़े को भी अपने शरीर को त्याग दिया था। इस प्रकार भगवान शिव ने जीवनदायिनी पांचो तत्व को अलग-अलग जगह पर अपने शरीर से अलग कर दिया। अपने शरीर से सभी चीजों को अलग कर देने के बाद भगवान शिव गुप्त गुफा में प्रवेश कर गए और उन्होंने माता पार्वती को अमर कथा सुनानी शुरू कर दी।
अमर कथा सुनाते वक्त माता पार्वती को बीच में ही नींद आ गई। नींद आने के बाद माता पार्वती वही पर सो गई। माता पार्वती के बीच में सो जाने की बात भगवान शिव को पता नहीं चली और भगवान शिव अमर होने की कहानी को सुनाते चले गए। उसी बीच दो सफेद कबूतर शिवजी की इस कथा को उस गुफा में बैठकर सुन रहे थे। परंतु शिव जी को यह बात पहले मालूम नहीं चली कि वहां उनके अलावा दो कबूतर भी मौजूद है। वहां मौजूद उन दोनों कबूतरों ने भगवान शिव के द्वारा सुनाई जा रही अमर होने की कथा को पूरा सुन लिया।
जब कथा समाप्त हो गई और शिव जी का ध्यान पार्वती की ओर गया तो उस दौरान महादेव की दिव्य दृष्टि कबूतरों के ऊपर पड़ी। कबूतरों को देखने के बाद भगवान शिव काफी ज्यादा क्रोधित हो गए। क्रोध के मारे भगवान शिव उन कबूतरों को मारने के लिए दौड़े। तभी उन कबूतरों ने भगवान शिव के सामने कहा कि हे प्रभु हमने आपसे अमर होने की कहानी सुनी है। ऐसे में अगर आप हमें मार डालते हैं तो आप की यह कथा गलत साबित हो जाएगी। जिसके बाद भगवान शिव ने उन कबूतरों को छोड़ दिया और उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम हमेशा इस स्थान पर माता पार्वती की प्रतीक चिन्ह के रूप में निवास करोगे। कबूतरों के इस जोड़े के अमर हो जाने के बाद आज भी इस जोड़े का दर्शन अमरनाथ जाने वाले यात्रियों को हुआ करता है।