कोई आपको अपमानित करता है तो कुछ और करने की बजाय करें ये काम, बदल जाएगा जीवन
आज हर कोई अपनी ज़िंदगी में काफ़ी व्यस्त है। आए दिन घर-परिवार या दोस्तों के बीच समस्याएँ देखने को मिलती हैं। जब किसी व्यक्ति को किसी दूसरे व्यक्ति से कोई समस्या या जलन की भावना होती है तो वह मौक़ा मिलते ही उसे अपमानित कर देता है। कई लोगों को इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता है जबकि कई लोग इस अपमान को सहन नहीं कर पाते हैं। अपमानित होने के बाद वह व्यक्ति भी बदला लेने के लिए उचित अवसर की तलाश में लग जाता है।
किसी ने सही ही कहा है कि अपमान को आप जितना महसूस करोगे ख़ुद को उतना ही अपमानित महसूस करोगे। आज हम आपको अपमान से जुदा महात्मा बुद्ध का एक चर्चित प्रसंग बताने जा रहे हैं। आपको बता दें महात्मा बुद्ध भी पहले एक अज्ञानी थे और अपना ज़्यादातर समय भोग-विलास में लगाते थे। लेकिन एक दिन उनको आत्मज्ञान हुआ। इसके बाद ये यहाँ से वहाँ घूमकर लोगों की अज्ञानता दूर करने लगे। आज भारत ही नहीं बल्कि बिश्व के कई देशों में महात्मा बुद्ध के समर्थक हैं जो बौद्ध धर्म का पालन करते हैं।
चलकर सिखाएँ मूर्खता के लिए सबक़:
महात्मा बुद्ध के एक शिष्य का किसी ने एक बार अपमान कर दिया था और उनका शिष्य क्रोधित हो गया था। इसके बाद महात्मा बुद्ध ने उसे कैसे शांत करवाया इसके बारे में यह कहानी है। एक दिन शाम के समय महात्मा बुद्ध बैठे हुए थे। वो डूबते हुए सूर्य को एकटक होकर देख रहे थे। अचानक उनका एक शिष्य आया और ग़ुस्से में बोला, स्वामी रामजी नाम के एक ज़मींदार ने मेरा अपमान किया है। आप तुरंत मेरे साथ चलकर उसे उसकी मूर्खता के लिए सबक़ सिखाएँ। महात्मा बुद्ध अपने शिष्य की बात सुनकर मुस्कुराने लगे। महात्मा बुद्ध ने मुस्कुराते हुए ही कहा, प्रिय तुम बौद्ध हो और एक सच्चे बौद्ध का अपमान करने की शक्ति किसी भी व्यक्ति के अंदर नहीं होती है। तुम अपमान वाली इस बात को जल्दी से जल्दी भूलने की कोशिश करो।
शिष्य भरा हुआ है बदले की भावना से:
जब तुम इस घटना को भूल जाओगे तो अपमान बचेगा ही नहीं। महात्मा बुद्ध की बात सुनकर शिष्य ने कहा लेकिन तथागत उस धूर्त ज़मींदार ने आपने लिए भी अपशब्दों का प्रयोग किया था। आपको उसे सबक़ सिखाने के लिए चलना ही होगा। आपको देखते ही वह शर्मिंदा हो जाएगा और अपने किए हुए के लिए क्षमा याचना करेगा। महात्मा बुद्ध को यह समझते देर नहीं लगी कि शिष्य बदले की भावना से भरा हुआ है। अभी इसे समझाने से कोई फ़ायदा नहीं होने वाला है। कुछ सोचने के बाद बुद्ध बोले, अगर ऐसी बात है तो में अभी रामजी के पास चलूँगा और उसे समझाने का प्रयास करूँगा। महात्मा बुद्ध ने शिष्य से कहा हम सुबह चलेंगे। अगले दिन सुबह बात पुरानी हो गयी थी। शिष्य भी अपने काम में लग गया और महात्मा बुद्ध अपने ध्यान में।
हर परिस्थिति में लेना चाहिए धैर्य से काम:
दोपहर हो जाने के बाद भी जब शिष्य ने अपमान वाली घटना के बारे में कुछ नहीं कहा तो बुद्ध ने स्वयं ही शिष्य से पूछा आज रामजी के पास चलना है ना? शिष्य ने कहा नहीं गुरु जी। जब मैंने घटना पर फिर से सोचा तो मुझे यह अहसास हुआ कि ग़लती मेरी ही थी। मुझे अपनी ग़लती का पश्चाताप है। अब रामजी के पास चलने की कोई आवश्यकता नहीं है। महात्मा बुद्ध ने शिष्य की बात सुनकर कहा कि अब ऐसी बात है तो हमें ज़रूर रामजी के पास चलना होगा। तुम अपनी भूल के लिए माफ़ी नहीं माँगोगे। महात्मा बुद्ध की इस कहानी से यही पता चलता है कि इंसान को हर परिस्थिति में धैर्य से काम लेना चाहिए। जब भूल किसी और से हो तो हमें उसे माफ़ कर देना चाहिए और अपनी भूल के लिए माफ़ी माँग लेनी चाहिए।