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ग़रीबी की वजह से भारत में तेज़ी से फैल रही है यह जानलेवा बीमारी, जानिए लक्षण और बचाव के उपाय

इस समय देश के पूर्वी भाग बिहार और झारखंड में तेज़ी से विसरल लीशमेनियेसिस (वीएल) यानी काला जार या काला बुखार तेज़ी से फैल रहा है। इस समय 17 जिलों के 61 ब्लॉक में यह जानलेवा बीमारी फैल चुकी है। पिछले कुछ सालों में काला बुखार के फैलने का ख़तरा बढ़ गया है। आपको जानकर हैरानी होगी कि काला बुखार देश के 76 देशों में फैला हुआ है। इस बीमारी को पूरी दुनिया में प्रोटोजोअल वेक्टर बॉर्न बीमारी माना जाता है। अनुमानतन हर साल पूरी दुनिया में इसके 250000 से 300000 मामले सामने आते हैं।

हैरान करने वाली बात यह है कि इसमें से 90 प्रतिशत मामले भारत, बांग्लादेश, सूडान, दक्षिणी सूडान, इथियोपिया और ब्राज़ील में होते हैं। अक्सर यह रोग देश की सबसे ग़रीब आबादी को ही प्रभावित करता है। हार्ट केयर फ़ाउंडेशन के अध्यक्ष के। के अग्रवाल का कहना है कि, ‘काला अज़ार, या काला बुखार लिशमेनिया जीनस के प्रोटोजोअन परजीवी के ज़रिए धीमी गति से होने वाली एक स्वदेशी बीमारी है। भारत में लिशमेनिया डोनोवेनी एकमात्र ऐसा परजीवी है जिसकी वजह से यह घटक बीमारी होती है। यह परजीवी मुख्यरूप से रेटीक्यूलोएंडोथेलियल सिस्टम को संक्रमित करता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें यह अस्थि मज्जा, स्प्लीन और लिवर में अधिकता में पाया जाता है।

क्या है काला अज़ार या काला बुखार:

पोस्ट काला अज़ार या काला बुखार डर्मल लिशमेनियेसिस एक ऐसी स्थिति है, जब लिशमेनिया डोनोवेनी हमारी त्वचा की कोशिकाओं पर हमला कर देता है। वह वहीं पर रहता है और वहीं पर विकसित होता है। इसके बाद कुछ दिन में त्वचा पर रोग घाव के रूप में सामने आता है। कुछ साल के इलाज के बाद कई मामले पोस्ट काला अज़ार डर्मल लिशमेनियेसिस के रूप में सामने आते हैं। हाल ही में ऐसा कहा गया है कि यह आँतों के चरण से गुज़रे बिना ही दिखाई दे सकता है। शुरुआत में लिशमेनिया परजीवी सैंड फ़्लाई के काटने की वजह से त्वचा पर घाव या अलसार पैदा करता है।

जब बीमारी बढ़ जाती है तो यह व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली पर हमला कर देता है। काला बुखार दो से आठ महीने के भीतर ही दिखाई देने लगता है। जिसमें लम्बे समय तक बुखार और कमज़ोरी के साथ कुछ सामान्य लक्षण भी दिखाई देते हैं। काला अज़ार के उन्मूलन के लिए भारत में 2010, 2015 और 2017 में लक्ष्य निर्धारित किया गया। लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन दवा 2014 में काफ़ी प्रभावी रहा। अनजाने में जब इस दवा को काला बुखार के रोगी को दिया गया तो एक ही दिन में बीमारी ठीक हो गयी। दवा ने बीमारी को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाई, लेकिन ग़रीबी की वजह से यह बीमारी फैलती ही जा रही है।

बीमारी से बचाव के उपाय:

*- इस बीमारी से बचने के लिए ऐसे कपड़ों का इस्तेमाल करें जिससे आपकी पूरी त्वचा ढकी रहे।

*- अगर त्वचा का कोई हिस्सा कपड़े से नहीं ढक पा रहे हैं तो वहाँ पर कीट प्रतिरोधी क्रीम लगाएँ।

*- घर में जिस कमरे में आप सबसे ज़्यादा समय बिताते हैं या पूरे घर में कीटनाशक दवा का छिड़काव करें।

*- घर में सबसे ऊँची वाली मंज़िल पर सोएँ, क्योंकि किट ज़्यादा ऊँचाई तक नहीं उड़ पाते हैं।

*- शाम होने के बाद और सुबह होने से पहले बाहर निकलने से बचें। इसी समय सैंड फ़्लाई सबसे ज़्यादा सक्रिय रहती हैं।

*- घर के दरवाज़ों और खिड़कियों पर जाली का इस्तेमाल करें और घर में एयर कंडिशनिंग का इस्तेमाल करें।

*- सोने वाले कमरे में पंखा चलाकर रखें। इससे कीटों को उड़ाने में परेशानी होगी।

*- मच्छरदानी का इस्तेमाल सोते समय करना एक बेहतर उपाय है। मच्छरदानी पर पाइरेथ्रोईड मिले कीटनाशकों का छिड़काव करना अच्छा होता है।

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