नागलोक का दरवाज़ा कहा जाता है इस कुएँ को, यहाँ जो भी स्नान करता है उसे मिलता है….
हिंदू धर्म में कई तरह की मान्यताएँ हैं। कई मान्यताओं के बारे में लोगों को जानकर बहुत हैरानी होती है। हिंदू धर्म में तीन लोकों के बारे में ज़िक्र किया गया है। पहला स्वर्गलोक, पृथ्वीलोक और अंत में पाताललोक। स्वर्ग लोक के बारे में कहा जाता है कि वहाँ देवताओं का वास होता है और वहाँ किसी तरह की कोई समस्या नहीं है। वहाँ रहने वाले लोगों को जीवन की सबहि सुख-सुविधाएँ आसानी से मिलती हैं। दूसरा पृथ्वीलोक के बारे में कहा जाता है कि यहाँ सुख-दुःख दोनो साथ-साथ हैं। यहाँ रहने वाले इंसान को जीवन में सुख भी प्राप्त होता है तो दुःख भी मिलता है।
इसके अलावा तीसरे और अंतिम लोक यानी पाताल लोक के बारे में कहा जाता है कि यह पृथ्वी के नीचे हैं, जहाँ हर समय आग धधकती रहती है। यहाँ के लोगों का जीवन कष्ट से भरा होता है। हालाँकि अभी तक इस तरह के किसी लोक की पुष्टि नहीं हो पायी है। धार्मिक मान्यता के अनुसार एक और लोक है, जिसे नागलोक कहा जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें नागलोक के रहस्य को आजतक कोई नहीं सुलझा पाया है। किसी को पता भी नहीं है कि नागलोक आख़िर है कहाँ।
लेकिन धर्म की नगरी कहे जाने वाले वाराणसी में एक ऐसा कुआँ है, जिसे लोक नागलोक का दरवाज़ा कहते हैं। शाश्वत नगर कहे जाने वाले काशी में धार्मिक रहस्यों की कोई कमी नहीं है। यहाँ के नवापूरा नमक जगह पर एक कुआँ है। जिसके बारे में लोगों का कहना है कि यह बहुत ज़्यादा गहरा है और यह पाताललो और नागलोक तक जाता है। किवदंतियों के अनुसार इस कुएँ की स्थापना स्वयं भगवान शिव ने की थी। इस कुएँ को लोग कारकोटक नाग तीर्थ के नाम से जानते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि इस कुएँ के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति को नागदंश के भय से मुक्ति मिल जाती है।
यह कुआँ कितना गहरा है, इसकी जानकारी किसी को नहीं है। इस कुए के बारे में लोगों का कहना है कि इस कुएँ के जल से स्नान और पूजा करने मात्र से ही सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। इसके साथ ही नागदोष से भी मुक्ति मिल जाती है। कारकोटक नाग तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध इस पवित्र स्थान पर नागवंश के महर्षि पतंजलि ने व्याकरणचार्य पाणिनी के महाभाष्य की रचना की थी। मान्यता के अनुसार इस कुएँ का रशता सीधे नागलोक जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें पतंजलि ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में थे।
पतंजलि का जन्म गोण्डा उत्तर प्रदेश में हुआ था। लेकिन ये काशी में नागकूप पर बस गए थे। यह व्याकरण पाणिनी के शिष्य थे। पतंजलि को शेषनाग का अवतार भी माना जाता है। नागपंचमी के दी छोटे गुरु का, बड़े गुरु का नाग लो भाई नाग लो कहकर नाग की तस्वीरें बाँटी जाती है। इसका मतलब होता है हम बड़े और छोटे दोनों की नागों का सम्मान करते हैं और दोनो की ही विधिवत पूजा अर्चना भी करते हैं। भगवान शिव के गले में बड़ा नाग होता है जबकि उनके पैरों के आस-पास छोटे-छोटे नाग होते हैं जो लोगों के आस्था से जुड़े हुए हैं।