गणेशजी की अनोखी मूर्ति जो तांत्रिक विधि से हुई थी स्थापित, श्रद्धालुओं की मन्नतें करते हैं पूरी
अगर हम किसी भी प्रकार का शुभ कार्य या पूजा पाठ करते हैं तो सभी देवी देवताओं में भगवान गणेश जी की सर्वप्रथम पूजा की जाती है, भगवान गणेश जी प्रथम पूज्य देवता माने गए हैं, अगर इनकी पूजा-अर्चना की जाए तो घर में किसी भी प्रकार की परेशानियां उत्पन्न नहीं होती है, हर प्रकार की बाधाएं दूर होती है, शादी विवाह जैसे शुभ कार्य में शादी की पत्रिका सर्वप्रथम भगवान गणेश जी के चरणों में ही रखा जाता है, जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं भगवान गणेश जी के मंदिर देशभर में बहुत से मौजूद है और आप लोगों ने इन मंदिरों के अंदर भगवान गणेश जी को सूंड के साथ विराजमान देखा होगा परंतु आज हम आपको भगवान गणेश जी के एक ऐसे मंदिर के बारे में जानकारी देने वाले हैं जिस मंदिर के अंदर भगवान गणेश बिना सूंड के विराजमान है और इस मंदिर के अंदर इनके बाल रूप की पूजा अर्चना होती है।
आज हम आपको भगवान गणेश जी के जिस मंदिर के बारे में जानकारी दे रहे हैं, यह मंदिर राजस्थान में है, इस स्थान पर गजानन महाराज का एक अनोखा मंदिर मौजूद है जिसके अंदर भगवान गणेश जी बिना सूंड के विराजमान है और इस मंदिर के अंदर इनके बाल रूप की पूजा की जाती है, वैसे तो इस मंदिर में श्रद्धालु रोजाना भगवान के दर्शन करने आते हैं परंतु बुधवार के दिन यहां पर भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती है, सभी भक्त अपनी अपनी मनोकामनाएं लेकर भगवान गणेश जी के मंदिर में आते हैं, देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग आते है, यहां पर दर्शन करने वाले भक्तों की भीड़ लगी रहती है।
राजस्थान का ये अनोखा गणेश मंदिर जयपुर में है और इस मंदिर को गढ़ गणेश के नाम से लोग जानते हैं, जयपुर के उत्तर दिशा में यह मंदिर अरावली की ऊंची पहाड़ी पर मुकुट के समान दिखाई देता है, यह मंदिर बहुत ही प्राचीन है, इस मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 500 मीटर की चढ़ाई पूरी करनी होती है, यह मंदिर इतनी ऊंचाई पर मौजूद है जहां पहुंचने के पश्चात जयपुर की भव्यता साफ-साफ नजर आती है, भगवान गणेश जी के इस मंदिर से पूरे शहर का नजारा साफ साफ दिखाई देता है, यहां का नजारा बहुत ही खूबसूरत है, बरसात के मौसम में इस पूरे इलाके का वातावरण और अधिक खूबसूरत नजर आता है, चारों तरफ हरियाली दिखाई देती है।
भगवान गणेश जी के इस मंदिर के अंदर जो मूर्ति मौजूद है उसकी तस्वीर लेना मना है, यह मंदिर जिस पहाड़ी पर स्थित है उसकी तहलटी में ही अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन हुआ था, जब भगवान गणेश जी के इस मंदिर में प्रसाद अर्पित किया जाता है तो उस दौरान गणेश जी के मंत्रों का भी उच्चारण होता है, इस मंदिर के अंदर गणेश चतुर्थी के दूसरे दिन भव्य मेला भी लगता है, इस मंदिर का निर्माण जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह द्वितीय ने करवाई थी और इन्होंने जयपुर में अश्वमेघ का भी आयोजन किया था, इस दौरान तांत्रिक विधि के द्वारा इस मंदिर की स्थापना करवाई गई थी, इस मंदिर के अंदर दो बड़े मूषक भी हैं जिनके कान में जो श्रद्धालु आते हैं वह अपनी मन्नत मांगते हैं, लोगों का ऐसा बताना है कि जो भक्त अपने सच्चे मन से इस मंदिर में अपनी मुराद मांगता है वह अवश्य पूरी होती है।