महाराज कृष्णदेव राय, तेनालीराम और ‘स्वर्ग’ की कहानी
एक दिन महाराज कृष्णदेव राय को स्वर्ग देखने की इच्छा हुई। लेकिन महाराज कृष्णदेव राय को ये नहीं पता था कि आखिर स्वर्ग किस जगह पर है। अगले दिन महाराज ने अपने मंत्रियों को दरबार में बुलाया और उनसे कहा, मैं स्वर्ग देखना चाहता हूं। क्या आप लोगों को पता है कि आखिर स्वर्ग कहां है और कैसे में स्वर्ग जा सकता हूं? राजा की ये बात सुनने के बाद हर कोई चुप हो गया।
लेकिन थोड़ी ही देर में तेनालीराम दरबार में खड़े होकर कहते हैं, महाराज मैं स्वर्ग का पता ढूंढ सकता हूं और आपको वहां ले जा सकता हूं। लेकिन ऐसा करने के लिए मुझे कुछ समय चाहिए। महाराज तेनालीराम से पूछते हैं, तुमको कितना वक्त चाहिए। तेनालीराम कहते हैं, मुझे 2 महीने और 5 हजार सोने के सिक्के चाहिए। महाराज तुरंत तेनालीराम को पैसे और दो महीने का समय दे देते हैं।
दो महीनों बाद तेनालीराम दरबार में आते हैं और महाराज से कहते हैं, महाराज मैंने स्वर्ग का पता लगा लिया है और मैं आपको स्वर्ग ले जाने के लिए आया हूं। महाराज तेनालीराम की ये बात सुनकर खुश हो जाते हैं और तेनालीराम के साथ चलने को तैयार हो जाते हैं। तभी महाराज से उनके मंत्री भी विनती करते हैं और कहते हैं, महाराज हम भी स्वर्ग देखना चाहते हैं, हमें भी अपने साथ ले चलो। महाराज अपने मंत्रियों की इस बात को मान लेते हैं।
तेनालीराम महाराज और मंत्रियों को एक जंगल में ले जाते हैं और उन्हें एक जगह दिखाते हुए कहते हैं, महाराज ये स्वर्ग है। उस जगह को देखकर महाराज खुश हो जाते हैं। क्योंकि उस जगह पर एक पानी का झरना होता, तरह-तरह के फूल लगे होते हैं, पानी के अंदर पक्षी मौजूद होते हैं और आसपास सुंदर घास उगी होती है।
हालांकि इस जगह को देखते ही एक मंत्री महाराज से कहता है, ये कैसे स्वर्ग हो सकता है? महाराज तेनालीराम आपको बेवखूफ बना रहा है। महाराज तेनालीराम से कहते हैं, ये जगह मुझे बेहद ही पसंद आई है लेकिन ये स्वर्ग तो नहीं है? तब तेनालीराम महाराज से कहते हैं, जब हमारे राज्य के पास ही इतनी सुंदर जगह हैं तो हम स्वर्ग जाने की क्यों कामना करें। ये जगह इतनी सुंदर है कि इस जगह को देखकर मन प्रसन्न हो जाता है और इसलिए ये जगह स्वर्ग से कम नहीं हैं।
तभी महाराज का अन्य मंत्री उनसे कहता है, महाराज तेनालीराम ने आप से सोने कि सिक्के भी लिए थे उनका क्या हूं। महाराज तेनालीराम से सिक्कों के बारे में पूछते हैं। तेनालीराम महाराज से कहते हैं, वो सारे सिक्के तो मैंने इस जगह को स्वर्ग बनाने में लगा दिए। दो महीने पहले ये जगह एकदम बेकार थी लेकिन मैंने यहां पर आकर पेड़ पौधे और फूल लगा दिए और इस जगह को स्वर्ग बना दिया। तेनालीराम की ये बात सुन महाराज खुश हो जाते हैं और तेनालीराम को और पैसे देखकर आदेश देते है कि वो उनके राजमहल के पास एक ऐसी जगह बना दें। ताकि जब उनका मन हो वो स्वर्ग को देख सकें।