जानिए क्यों पहनते हैं जनेऊ और क्या है इसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व
सनातन धर्म में व्यक्ति के 24 संस्कारों में से एक ‘उपनयन संस्कार’ है, जिसके अंतर्गत ही जनेऊ धारण करने की परम्परा है। यहां उपनयन’ से अर्थ होता है ब्रह्म यानी ईश्वर के पास या सन्निकट जाना। सनातन धर्म में जनेऊ धारण करना अनिवार्य होता है, यहां तक कि हिन्दू धर्म में विवाह भी तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक कि जनेऊ धारण ना किया जाए। ऐसे में सनातन धर्म में जिस दिन गर्भ धारण किया हो उसके आठवें वर्ष में बालक का उपनयन संस्कार का विधान बनाया गया है और मान्यता है कि जनेऊ पहनने के बाद ही विद्यारंभ होना चाहिए, पर आजकल अधिकांश लोग जनेऊ नहीं पहनते हैं और अगर कोई धारण करता भी है तो इसकी रस्म अदायगी से अधिक कुछ नहीं होता । दरअसल आज लोग जनेऊ का महत्व नहीं समझते हैं, जबकि आपको पता नहीं चाहिए कि जनेऊ का पहनने अध्यात्मिक महत्व के साथ वैज्ञानिक महत्व भी है और आज हम आपको उसी के विषय में बताने जा रहे हैं..
जनेऊ का धार्मिक महत्व
जनेऊ तीन धागों से बना पवित्र धागा होता है, जिसे बाएं कंधे के ऊपर से होते हुए दाईं भुजा के नीचे पहनत जाता है। जनेऊ के तीन सूत्र त्रिमूर्ति यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं, साथ ही मनुष्य के सत्व, रज और तम गुणों के प्रतीक भी होते है। वहीं जनेऊ के हर सूत्र में में तीन-तीन तार होते हैं, ऐसे में कुल तारों की संख्या नौ होती है। जिनमे एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वारा मिलाकर शरिर के नौ अंगो को साधते हैं । जिसका अभिप्राय है कि हम मुख से अच्छा बोले और ग्रहण करें, आंखों से हमेशा अच्छा देंखे और कानों से अच्छा ही सुने। वहीं जनेऊ में पांच गांठ लगाई जाती है जो कि ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के प्रतीक होते हैं। साथ ही ये पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों के भी प्रतीक होते है।इस तरह जनेऊ धारण करने के साथ व्यक्ति हर पल, हर कर्म ईश्वर को समर्पित होता है और वो ईश्वर के नजदीक रहता है।
जनेऊ धारण के नियम
जनेऊ पवित्र और धार्मिक दृष्टि से महत्व होता है, ऐसे में उसके धारण करने के लिए कुछ नियम बनाए गए है ताकि इसकी पवित्रता बची रहे। जैसे कि मल-मूत्र विसर्जन के दौरान जनेऊ को दाहिने कान पर चढ़ा लेने का नियम बना है और उसके बाद हाथ स्वच्छ करके ही उतारा जाता है जो कि स्वच्छता की दृष्टि से जरूरी भी है. दरअसल ऐसा करने से उद्देश्य ये होता है कि जनेऊ कमर से ऊंचा रहे और ये अपवित्र न हो। दरअसल जनेऊ धारण करने के जो भी नियम बनाए गए हो उनके पीछे वैज्ञानिक कारण हैं। साथ ही जनेऊ धारण करने के भी अपने वैज्ञानिक दृष्टि से कई लाभ मिलते हैं।
जनेऊ का वैज्ञानिक महत्व
- जो लोग जनेऊ पहनते हैं वे इससे जुड़े सफाई के नियमों का पालन करते हैं,ऐसे में इस आदत से वो जीवाणुओं और कीटाणुओं के प्रकोप से बच जाते हैं।
- जनेऊ का नियम है कि इसे धारण करते हुए हमेशा बैठकर ही जलपान करना चाहिए और साथ ही नियम के तहत बैठकर ही मूत्र त्याग करना होता है। ये दोनों नियमों स्वास्थ्य के लिए लाभकारी सिद्ध होते हैं, इनका पालन करने से किडनी पर प्रेशर नहीं पड़ता।
- वहीं मेडिकल साइंस ने भी यह पाया है कि जनेऊ धारण करने वालों व्यक्ति को हृदय रोग और ब्लडप्रेशर की आशंका दूसरों के मुकाबले कम हो जाती है। दरअसल स्वास्थ्य शोध की माने तो जनेऊ के हृदय के पास से गुजरने से हृदय रोग की संभावना कम हो जाती है, इससे रक्त संचार सुचारू भी सुधरता है।
- वहीं जनेऊ धारण करने वाले व्यक्ति को लकवे मारने की संभावना भी कम हो जाती है क्योंकि जनेऊ धारण करने का नियम है कि लघुशंका करते समय दांत पर दांत बैठा कर रहना चाहिए। वहीं मल-मूत्र के समय दांत पर दांत बैठाकर रहने से व्यक्ति को लकवा मारने का खतरा कम हो जाता है।
- मल-मूत्र विसर्जन के दौरान जनेऊ को दाहिने कान पर लपेटने का नियम है। ऐसा करने से कान की उन नसों पर भी दबाव पड़ता है, जिनका संबंध सीधे आंतों से होता है। ऐसे में इन नसों पर दबाव पड़ने से पाचन सही होता है और कब्ज की समस्या खत्म होती है।
- जनेऊ को दायें कान पर बाधने कान की वो नस दबती है, जिससे मस्तिष्क की सोई हुई तंद्रा जाग जाती है करती है और दिमाग की वे नसें एक्टिव हो जाती हैं, इससे स्मरण शक्ति मजबूत होती है, वहीं दाएं कान की नस अंडकोष और गुप्तेन्द्रियों से भी जुड़ी होती है। ऐसे में कान पर जनेऊ लपेटने से शुक्राणुओं की भी रक्षा होती है।