इस गाँव में सावन आते ही छा जाती है ख़ामोशी, मंदिर का शिवलिंग 9 सालों से देख रहा गंगाजल की राह
भारत एक धार्मिक और सांस्कृतिक देश है जहां पर छोटे-मोटे त्योहारों पर भी भगवान की भरपूर श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजन और वंदन किया जाता है। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि सावन का पावन महीना चल रहा है जिसमें भगवान शिव की पूरे आस्था के साथ भक्त द्वारा पूजन तन मन से किया जाता है। यदि आप भी शिव भक्त हैं तो शिव की महिमा से अचुके नहीं होंगे आप भी जानते होंगे कि भगवान शिव अपने भक्तों के लिए क्या मायने रखते हैं . सावन के इस पावन महीने में लाखों भक्तों कावड़ लेकर दूर-दूर तीर्थ स्थलों पर जाते हैं और भगवान शिव के जलाभिषेक के लिए गंगा का पवत्र जल लेकर आते हैं। लेकिन आज हम आपको बताने वाले हैं एक ऐसे रहस्यमई जगह के बारे में जहां पर एक ऐसा शिवलिंग स्थित हैं जो पिछले 9 वर्षों से गंगाजल के लिए प्यासा हैं और गंगाजल पाने के लिए गुहार लगा रहे हैं।
लेकिन वहां पर किसी भी इंसान में इतनी हिम्मत नहीं है कि उस शिवलिंग को गंगाजल से नहला सके और उनका जलाभिषेक कर सके और ना ही वहां का कोई व्यक्ति ऐसा करता है। यह बहुत ही हैरानी की बात है लेकिन यह सच है आइए जानते हैं पूरी कहानी-
सावन माह में नहीं होती यहां पर शिव की पूजा
सावन के पावन महीना आरंभ होते ही सभी शिवालयों में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। शिव के दर्शन करने और जलाभिषेक करने के लिए दूर-दूर से यात्री तीर्थ स्थलों पर जाते हैं। भगवान शिव के असंख्यक भक्त भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हरसंभव पूजा अर्चना करते हैं और सावन का महीना इन सभी कामों के लिए शुभ व पवित्र माना जाता है।जहां हर और भोले के भगवा रंग में सभी भक्तों रंगे होते हैं और भक्ति पूर्ण दर्शन करने के लिए तीर्थ स्थलों पर जाते हैं वहीं दूसरी ओर हरियाणा के एक गांव में सावन का महीना आरंभ होते ही मातम छा जाता है। जहां के लोग भगवान शिव की पूजन वंदन और व्रत आदि से दूर हो चुके हैं उन्हें भगवान शिव का वह भगवा रंग बेहद नापसंद है उन्हें इन सब चीजों से नफरत हो चुकी है और इसके पीछे छुपी है एक दर्दनाक कहानी।
हरियाणा में मौजूद है ये मंदिर
यह गांव हरियाणा में स्थित है जो गुड़गांव से 28 किलोमीटर दूरी पर है जिसका नाम बाघन गांव है। यहां के लोगों को शिव भक्तों और कावड़ियों और भगवान शिव के भगवा रंग से बेहद नफरत है। ऐसा उन लोगों के साथ आरंभ से नहीं था लेकिन 9 साल पहले उनके साथ कुछ ऐसा हादसा हुआ कि उन्होंने यह सब चीजें छोड़ दी और उनसे नफरत करने लगे।दरअसल साल 2010 में उनके गांव से 22 युवकों सहित 24 लोग कांवर लेकर काशी की यात्रा पर 2 अगस्त 2010 को निकले थे वही रास्ते में एक सड़क दुर्घटना के दौरान उनकी मृत्यु हो गई जिसके बाद यह गांव वाले सदमे में है और भगवान शिव की आराधना करना छोड़ चुके हैं उनको कावड़िए और भगवा रंग से नफरत हो चुकी है। एक साथ दर्जनों महिलाएं विधवा और बहुत से मां बाप अपने बच्चों को खो चुके हैं बहुत सी बहनें अपने भाइयों को भुला चुके हैं।
वह हादसा उनके जीवन का एक दर्दनाक सच बन गया था जिसके बाद से उन्होंने उस साल रक्षाबंधन का त्यौहार भी नहीं मनाया और अब भगवान शिव की आराधना करनी भी छोड़ दी है और उस गांव में स्थित शिवलिंग पर 9 साल से किसी ने जलाभिषेक नहीं किया है।