सिर्फ अंधविश्वास नहीं बच्चों का मुंडन, इसके पीछे छिपे हैं 4 वैज्ञानिक कारण, क्या आप जानते हैं?
भारत एक ऐसा देश है जहां कई धर्म और समुदाय के लोग रहते हैं। हिंदू धर्म की बात करें तो इसके कई नियम और कायदे होते हैं। इसमें एक बच्चों का मुंडन कराना भी शामिल है। मुंडन को हिंदू धर्म में 16 संस्कारों में से एक माना जाता है। आप ने देखा होगा कि लोग अक्सर अपने बच्चों का जन्म के कुछ समय बाद (सामान्यतः पहले या तीसरे वर्ष में) मुंडन करवाते हैं। इस दौरान बच्चे के बाल उतारकर यज्ञ करवाया जाता है। इसे ही मुंडन संस्कार कहते हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये मुंडन आखिर क्यों करवाया जाता है? बच्चे का मुंडन करवाने को लेकर लोग अक्सर धार्मिक तर्क देते हैं। लेकिन कुछ पढ़े लिखे लोग इन तर्कों की हंसी उड़ाते हैं। इसे अंधविश्वास या दिखवा कहते हैं। लेकिन इस मुंडन के पीछे सिर्फ धार्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक कारण भी है। आज हम आपको बच्चों का मुंडन (Mundan Ceremony) कराने का वैज्ञानिक कारण बताने जा रहे हैं।
किटाणुओं का खात्मा
एक बच्चा 9 महीने मां के गर्भ में रहता है। जब वह बाहर आता है तो उसके सिर में कई तरह के किटाणु रहते हैं। ये किटाणु और बैक्टेरिया शैंपू करने के बाद भी नहीं जाते हैं। इसलिए बच्चों का मुंडन करवाया जाता है। उनके बाल मुंडवा देने के बाद सिरसे सारे जर्म्स और बैक्टेरिया दूर हो जाते हैं। इस तरह बच्चा इन जर्म्स के चलते बार-बार बीमार भी नहीं पड़ता है।
फोड़े, फुंसी, दस्त में राहत
जब बच्चों का मुंडन किया जाता है तो उसका बॉडी टेम्परेचर अच्छे से कंट्रोल होता है। इससे बच्चे को फोड़े, फुंसी और दस्त जैसी बीमारियाँ नहीं होती है। इससे उसका सिर ठंडा भी हो जाता है। शरीर में अतिरिक्त गर्मी नहीं बढ़ती है। वह सेहतमंद रहता है। उसकी हेल्थ सुधरती है।
दिमाग का विकास
जब बच्चे का मुंडन होता है तो उसके सिर के सभी बाल हट जाते हैं। इस कारण सूरज की रोशनी सीधा उसके माथे पर पड़ती है। धूप की वजह से उसके दिमाग का विकास अच्छा होता है। ये धूप बच्चों की कोशिकाएं एक्टिव करती है। वहीं इससे नसों में खून का बहाव भी अच्छे से होने लगता है।
दांत आने में नहीं होती तकलीफ
बच्चों के जब दांत निकलते हैं तो उन्हें कई तकलीफों का सामना करना पड़ता है। इसमें दस्त होना सबसे आम बात है। वहीं उन्हें बुखार भी आ जाता है। लेकिन जब उसका मुंडन करवा लिया जाता है तो उसे दांत आने में ज्यादा तकलीफों को नहीं सहन करना पड़ता है।