STORY: संत रोज घास काटकर एक टोकरी बनाने लगा और उस टोकरी को नदी में बहा दिया करता था
एक संत ने नदी के किनारे अपनी एक कुटिया बना रख थी। ये संत इस कुटिया में अकेले ही रहा करता था और हमेशा ध्यान में मगन रहता था। एक दिन जब ये संत अपनी कुटिया से बाहर निकला, तो इस संत ने पाया की उसकी कुटिया के आसपास काफी सारी घास उग आई है। इस संत ने तुरंत इस घास को काटना शुरू कर दिया। थोड़ी सी घास काटने के बाद इस संत ने सोच की मैं इस घास का क्या करुंगा ? तभी संत को याद आया की उसने अपने बचपन में घास से टोकरी बनाना सिखा था। जिसके बाद इस संत ने कटी हुई घास से टोकरी बनाना शुरू कर दी। टोकरी बनाने के बाद इस संत ने सोचा की मुझे टोकरी की कोई जरूरत नहीं है। इसे में नदी में बहा देता हूं। इस संत ने टोकरी को कुटिया के पास स्थित एक नदी में बहा दी।
अगले दिन इस संत ने बची हुई घास को काटना शुरू किया और घास काटने के बाद उसकी टोकरी बना दी और उस टोकरी को नदी में बहा दिया। इस संत को टोकरी बनाना अच्छा लगने लगा और ये संत इसी तरह से रोज घास काटकर एक टोकरी बनाने लगा और उस टोकरी को नदी में बहा दिया करता था। एक दिन टोकरी बनाते हुए इस संत ने सोचा की मेरे द्वारा बनाई जा रही टोकरी का कोई भी प्रयोग नहीं हो पाता है और रोज टोकरी बनाना व्यर्थ है। घास की टोकरी बनाकर उसे नदी में प्रवाहित करने से मुझे किसी भी प्रकार का लाभ भी नहीं मिलता है। इसलिए आज के बाद में टोकरी नहीं बनाउंगा और इस संत ने टोकरी बनाना छोड़ दिया।
एक हफ्ते बाद इस संत को पास के ही एक गांव से यज्ञ में शामिल होने का न्योता मिला। ये संत इस यज्ञ में शामिल होने के लिए गांव चले गया। इस संत ने जैसे ही गांव में प्रवेश किया तो पाया कि इस गांव के लोगों के हाथ में वहीं टोकरी थी जो ये बनाकर पानी में प्रवाहित कर देता था। इस संत ने एक गांव वाले से पूछा कि गांव के लोगों के पास ये टोकरी कहां से आई। तब उस व्यक्ति ने संत को बताया कि हमारे गांव के बाहर ही एक बूढ़ी महिला रहती है और वो इस टोकरी को बेचा करती है। लेकिन एक हफ्ते से उस महिला ने गांव में आकर टोकरी बेचना बंद कर दिया है। ये बात सुनते ही संत उस बूढ़ी महिला के पास पहुंच गया और संत ने महिला से एक टोकरी मांगी। इस बूढ़ी महिला ने संत से कहा, उसके पास एक भी टोकरी नहीं है। संत ने बूढ़ी महिला से पूछा कि वो ये टोकरी कहां से लाया करती थी। तब इस बूढ़ी महिला ने बताया कि कुछ हफ्ते पहले उसे नदी में रोज एक टोकरी मिला करती थी और इन टोकरियों को बेचकर वो पैसे कमाया करती थी। लेकिन अब नदी से टोकरी मिलना बंद होगा गया है और उसके पास एक रूपया भी नहीं बचा है।
बूढ़ी महिला की बात सुनकर संत को दुख हुआ और इस संत ने महिला से कहा आप कल जाकर नदी में देखना क्या पता आपको टोकरी मिल जाए। संत ने फिर से घास की टोकरियां बनाना शुरू कर दी और उन्हें नदी में प्रवाहित करने लगा।
कहानी से मिली सीख
हमारे अंदर जो प्रतिभा होती है कोई बार वो औरों के काम आ जाती है। इसलिए मनुष्य को कभी भी अपनी प्रतिभा को नहीं छोड़ना चाहिए और इस संत की तरह निस्वार्थ भाव से औरों की मदद करनी चाहिए। क्योंकि निस्वार्थ भाव से की गई मदद से हमें पुण्य की प्राप्ति होती है।