भगवान शिव के इस प्राचीन मंदिर में जलाभिषेक से सभी इच्छाएं हो जाती है पूरी
विश्व भर में ऐसे बहुत से प्राचीन मंदिर मौजूद हैं जो अपनी अपनी विशेषता और अपने चमत्कार के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है, आप सभी लोगों ने बहुत से शिव मंदिरों के बारे में सुना होगा और इन मंदिरों में दर्शन करने के लिए भी गए होंगे, भगवान भोलेनाथ के भक्तों के अंदर इन मंदिरों के प्रति अटूट आस्था देखने को मिलती है, ऐसे बहुत से शिवभक्त है जो प्राचीन शिव मंदिरों में दर्शन करने के लिए जाते हैं, यहां शिव भक्तों की भारी भीड़ इकट्ठी होती है और भगवान शिवजी को जल चढ़ा कर अपनी मनोकामनाएं पूरी करने की प्रार्थना करते हैं, ऐसा माना जाता है कि अगर इन प्राचीन मंदिरों के अंदर कोई भी मनोकामना मांगी जाए तो वह अवश्य पूरी होती है, इन्हीं शिव मंदिरों में से एक परशुरामेश्वर मंदिर भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर है, यह मंदिर उत्तर प्रदेश के बागपत के पुरा गांव में मौजूद है, यह स्थान बहुत ही पवित्र माना गया है क्योंकि इसी जगह पर भगवान परशुराम ने भी भगवान शिव जी की पूजा अर्चना की थी, इस मंदिर के अंदर वर्ष में दो बार लगने वाले कांवड़ मेले में लाखों की तादाद में श्रद्धालु कांवर लाकर भगवान का जलाभिषेक करते हैं।
इस प्राचीन मंदिर के बारे में लोगों का ऐसा बताना है कि इस जगह पर काफी पुराने समय पहले कजरी वन हुआ करता था, इसी वन में जमदग्नि ऋषि अपनी पत्नी रेणुका सहित अपने आश्रम में रहा करते थे, ऋषि की पत्नी रेणुका रोजाना नियमित रूप से कच्चा घड़ा बनाकर हिंडन नदी से जल भरकर लाती थी और भगवान शिव जी को अर्पित करती थी, पुराणों के अनुसार हिंडन नदी को पंचतीर्थी कहा गया है और हरनंदी नदी के नाम से भी प्रसिद्ध है, जो इसी के समीप से होकर निकलती है, ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार देखा जाए तो भगवान परशुराम की तपस्या और वहां पर स्थापित शिवलिंग खंडहर में बदल गई थी जिसके पश्चात दोबारा से लंढोरा की रानी ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।
इस स्थान के बारे में ऐसा बताया जाता है कि एक समय की बात है रुड़की स्थित कस्बा लंढोरा की रानी अपने लश्कर समेत यहां से होकर गुजर रही थी, तभी उनका हाथी इस स्थान पर आकर रुक गया था, महावत की लाख कोशिश करने के बाद भी हाथी एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाया था, तब रानी ने अपने नौकरों से कहकर यहां पर खुदाई करवाई थी तो वहां से शिवलिंग प्रकट हुआ था, शिवलिंग को देखकर सभी आश्चर्यचकित हो गए थे, तब रानी ने इस स्थान पर शिव मंदिर का निर्माण करवाया था, जहां पर आजकल के समय में हर वर्ष लाखों की तादाद में श्रद्धालु हरिद्वार से पैदल गंगाजल लाकर भगवान आशुतोष का जलाभिषेक करते हैं, ऐसा बताया जाता है कि जो भी श्रद्धालु यहां पर अपने सच्चे मन से पूजा अर्चना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती है, इस स्थान को लेकर लोगों का अटूट विश्वास देखने को मिलता है और भारी संख्या में लोग यहां पर दर्शन करने के लिए आते हैं, इस स्थान से कोई भी व्यक्ति निराश होकर वापस नहीं लौटता है।