हिंदू धर्म में मुंडन संस्कार क्यों होता है? 90% लोग नहीं जानते नवजात के बाल काटने की असली वजह
घर में जब भी बच्चा पैदा होता है तो परिवार के लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहता है। बच्चे के जन्म के बाद उसका मुंडन संस्कार का भी रिवाज होता है। यह हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक होता है। इन सभी संस्कारों के पीछे कोई धार्मिक और वैज्ञानिक वजह होती है। आज हम आपको मुंडर संस्कार से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें बताएंगे।
कब होता है बच्चों का मुंडन संस्कार?
मुंडन संस्कार सामान्यतः बच्चे के जन्म के एक साल के होने के अंतिम दिनों में किया जाता है। लेकिन कुछ समुदायों में यह 3 या 5 वर्ष की उम्र में भी किया जाता है। वहीं मराठी समुदाय में बच्चे के 7 साल का होने तक मुंडन संस्कार होता है। यहां ध्यान देने की बात ये है कि मुंडन संस्कार हमेशा बच्चे के विषम वर्ष जैसे 1, 3, 5 में ही होता है। सम वर्ष जैसे 2, 4, 6 में नहीं होता है। इस मुंडन संस्कार में बच्चे के सभी रिश्तेदार शामिल रहते हैं। कुछ तो इसे भी धूमधाम से करते हैं।
मुंडन संस्कार के बाद बच्चे के सिर पर हल्दी का लेप लगाया जाता है। कुछ हल्दी से स्वस्तिक भी बनाते हैं। हल्दी एंटीबायोटिक का काम करती है। यदि बाल काटने के दौरान बच्चे को कोई कट लग जाए या स्किन पर किटाणु लग जाए तो हल्दी उसे ठीक कर लेती है। ध्यान रहे कि 1 साल से छोटे बच्चों के सिर पर उस्तरा लगवाने की बजाय ट्रीमर मशीन चलवाना ज्यादा सेफ होता है। बच्चों के इस मुंडन के पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों ही कारण होते हैं।
मुंडन संस्कार के धार्मिक-वैज्ञानिक कारण
धार्मिक मान्यताओं की माने तो मुंडन संस्कार के बाद बच्चे के दिमाग का सही ढंग से विकास होता है। दूसरी ओर वैज्ञानिक दृष्टिकोण यह कहता है कि नवजात शिशु के बाल में अशुद्धियां होती हैं। इसलिए इसे काटना सही होता है। इससे बच्चा इंफेक्शन से बच जाता है। बाल काटने से बच्चे के मन और मस्तिष्क पर बुरा असर नहीं होता है।
एक अन्य धार्मिक मान्यता के अनुसार बच्चे का मुंडन कर हल्दी लगाने से उसका भाग्य बढ़ जाता है। इसकी वजह हल्दी का संबंध भगवान विष्णु और गुरु ग्रह से होना है। वहीं मुंडन के बाद बच्चे के सिर पर स्वास्तिक का चिह्न बनाने से उसका सहस्रार चक्र सक्रिय होता है। यह चक्र शरीर को नियंत्रित करने का काम करता है।
इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए बच्चे का मुंडन संस्कार करवाना अच्छा होता है। हालांकि इसे कराने का समय अलग-अलग धर्म, जाति और उनके कुल देवी देवताओं से जुड़ी मान्यतों पर निर्भर करता है।