किन्नर शब्द सुनकर लोग आज भी असहज महसूस करते हैं। वहीं यदि परिवार में इस तरह का कोई सदस्य है तो फिर उससे लोग दूरी बनाना ही ठीक समझते हैं। इतना ही नहीं बल्कि ना तो उसे समाज में कोई इज्जत मिलती है और ना ही परिवार वाले उसे इस रूप में स्वीकार करते हैं।
इसी बीच हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसे किन्नर की कहानी जिन्होंने बचपन से ही कई दुख झेले हैं। उन्होंने इस बीच तीन बार सुसाइड करने की कोशिश भी की, हालांकि इसमें कामयाब नहीं हो पाए। दरअसल किस्मत को कुछ और ही मंजूर था और आगे चलकर वह एक बड़ा नाम बने। तो आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कहानी उन्हीं की जुबानी..
किन्नर के रूप में किसी ने स्वीकार नहीं किया, अंत में घर छोड़ना पड़ा
जिसके बारे में हम बात कर रहे हैं उनका नाम पवित्रानंद नीलगिरी है जो किन्नर अखाड़ा की महामंडलेश्वर है। उन्होंने दैनिक भास्कर से खास बातचीत की और अपनी कहानी को बयां किया। मीडिया रिपोर्ट की मानें तो महाराष्ट्र के विदर्भ के अमरावती जिले में उनका जन्म हुआ जो एक लड़के का रूप था। परिवार में सबसे छोटा होने के कारण उन्हें खूब प्यार मिला लेकिन जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती गई उनकी हरकतें लड़कियों की तरह होने लगी।
इतना ही नहीं बल्कि उनके हाव-भाव, चाल ढाल और उनके रहने का तरीका बिल्कुल लड़कियों से मिलने जुलने लगा। घर के लोग उन्हें मारते थे ताकि वह लड़कियों जैसी हरकतें ना करें। वही मोहल्ले वाले उनका मजाक उड़ाते थे। मराठी ब्राह्मण परिवार में एक किन्नर पैदा हो सकता है इसके बारे में लोग खूब मजाक बनाने लगे। ऐसे में घर में उनकी पिटाई होती थी और फिर ऐसा समय आया जब
उन्होंने अपने घर को छोड़ने के फैसला कर लिया।
पवित्रानंद नीलगिरी ने अपनी कहानी को बयां करते हुए कहा कि, “मां ने इज्जत बचाने के नाम पर मुझे मौसी यहां भेज दी, लेकिन वहां भी मैं नहीं रहा और कुछ ही महीनों में वापस घर आ गया। घर आने के बाद फिर से सबके गुस्से का शिकार होने लगा। जिसका जी करता दमभर कुटाई कर देता। मां को तकलीफ जरूर होती, लेकिन वो कुछ कर नहीं पाती। इसी तरह स्कूल में भी टीचर के हाथों भी मेरी खूब पिटाई हुई। टीचर बोलते कि तुम लड़कियों के साथ क्यों रहते हो।
मुझे आज भी याद है। तब 9वीं क्लास में था। भैया ने मेरे ऊपर कुल्हाड़ी फेंक दी। मेरे पांव की पूरी ऊंगलियां कट गईं। एक दफा भाइयों की मार से तंग आकर मैंने खुद को खत्म करने का मन बना लिया और गांव के एक कुंए में छलांग लगा दी, लेकिन मेरे कजिन भी कुंए में कूद गए और मुझे बचा लिया। इसके बाद एक दिन स्कूल की तीसरी मंजिल से नीचे कूद गई। काफी चोट लगी, लेकिन बच गई। एक दफा तो जहर पी लिया, फिर भी मरी नहीं।”
इसके अलावा भी उन्होंने कई मुश्किलें झेली, फिर एक समय आया जब लगा कि, घरवालों के साथ रहना ठीक नहीं है। आगे उन्होंने बताया कि, “घर में भजनों की एक कैसेट थी, जिसमें नागपुर के एक मंदिर का एड्रेस लिखा हुआ था। तय किया कि उसी मंदिर में चला जाए। घर से पांच किलो तुअर की दाल लिया और निकल पड़ा। मंदिर के दरवाजे बंद थे।
मैंने दरवाजा खटखटाया। वहां के बाबा को अपनी सारी कहानी बताया और बोला कि अब मैं यहीं रहना चाहता हूं। इस तरह मैं मंदिर में रहने लगा। मंदिर में हर दिन झाड़ू पोछा करता और भगवान को चढ़ने वाला भोग मुझे खाने में मिलता। एक महीने बाद मैंने वहां एक कपड़े की दुकान में 300 रुपए महीने पर सेल्समैन की नौकरी करने लगा।”
आज किन्नर की दुनिया का बड़ा नाम है पवित्रानंद नीलगिरी
इसके बाद उन्होंने खुद को पूरी तरह किन्नर के रूप में स्वीकार कर लिया। उन्होने बताया कि, एक सेमिनार में मशहूर किन्नर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी से मुलाकात हुई। वह मुंबई की रहने वाली थी और सिंबॉयसिस से पढ़ी थी। दिखने में खूबसूरत, फर्रादेदार अंग्रेजी बोलने वाली बहुत ही प्रभावशाली किन्नर थी। इसके बाद मैंने तय किया कि जो मेरा असली रूप है, उसी में सबके सामने आना चाहिए। मैंने खुद से मर्द का झूठा टैग हटा लिया और साल 2013 में किन्नर बन गई।
यहां से मैं अपने असली रूप में काम करने लगी। साड़ी पहनना, मेकअप करना सब कुछ शुरू कर दिया। साल 2007 में मैं उनकी चेला बन गया। मैंने और लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने मिलकर किन्नरों और एलजीबीटी समुदाय के लिए कई सेमिनार करवाए।
आगे पवित्रानंद नीलगिरी ने बताया कि उन्होंने इसके अलावा भी अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे और अपने हक को पाने के लिए उन्होंने कानूनी लड़ाई भी लड़ी। साल 2019 आते-आते उनको जूना अखाड़े में विलय हो गया और वह अब महामंडलेश्वर के रूप में मशहूर है।