देवी माता का बेहद खास और अनोखा मंदिर, जहाँ मत्था टेकने वाले भक्तों की हर मुराद पूरी करती है मां
धार्मिक देशों में हमारे भारतवर्ष का भी नाम आता है, हमारे देश में ज्यादातर सभी लोग आस्था पर विश्वास करते हैं, देश भर में ऐसे बहुत से मंदिर मौजूद है जिनकी अपनी कोई ना कोई खासियत अवश्य है, इन मंदिरों के अंदर भगवान के दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ लगती है, भक्त लंबी कतार में लगकर भगवान के दर्शन करते हैं और अपने समस्त दुखों से छुटकारा प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे ख़ास और अनोखे मंदिर के बारे में जानकारी देने वाले हैं जो अपनी विशेषता के लिए दुनिया भर में मशहूर है।
दरअसल, आज हम आपको जिस मंदिर के बारे में जानकारी दे रहे हैं यह मंदिर मां कुष्मांडा का मंदिर है, जो कि उत्तर प्रदेश के सागर कानपुर के बीच घाटमपुर में स्थित है, इस मंदिर के अंदर माता कुष्मांडा की लेटी हुई मुद्रा में विराजमान है, यहां पर मां कुष्मांडा कि पिंड स्वरुप से लगातार पानी रिसता रहता है, ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति इस पानी का सेवन करता है उसके कई तरह के रोग समाप्त हो जाते हैं, अगर हम धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देखें तो जब इस पूरे संसार का अस्तित्व नहीं था तब माता कुष्मांडा ने अपनी हंसी से ब्रह्मांड की रचना की थी यही वजह है कि इनको सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति माना गया है।
मां कुष्मांडा के इस मंदिर के बारे में ऐसा बताया जाता है कि यह मंदिर मराठा शैली से बना हुआ है, ऐसा भी कहा जाता है कि यहां पर जो भी मूर्तियां स्थापित है वह दूसरी से 10 वीं शताब्दी के मध्य की बीच की है, एक पौराणिक कहानी के अनुसार एक बार कूड़हा नामक ग्वाले की गाय अपना दूध झाड़ी में गिरा दिया करती थी, गाय द्वारा यह कार्य रोजाना नियमित रूप से किया जाता था. कूड़हा ने गाय द्वारा गिराए जाने वाले दूध को देखा और उसने एक दिन वहां पर खुदाई की तो उसको वहां पर एक मूर्ति नजर आई थी, उसने काफी खुदाई की परंतु इस मूर्ति का अंत उसको नहीं मिल पाया था, तब उसने इसी स्थान पर एक चबूतरे का निर्माण करवा दिया था, ऐसा कहा जाता है कि माता कुष्मांडा देवी के वर्तमान मंदिर का निर्माण 1890 में चंदीदीन भुर्जी ने करवाया था और यहां पर जो अखंड ज्योत प्रज्वलित होती है वह 1988 से जल रही है।
इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां पर मां कुष्मांडा की एक पिंडी के स्वरूप में लेटी हुई प्रतिमा मौजूद है, जिससे लगातार पानी रिसता रहता है, वैज्ञानिकों ने भी इस रहस्य को जानने की बहुत कोशिश की थी परंतु वह इसको पता लगाने में नाकामयाब साबित हुए थे, उनको इस बात का अभी तक पता नहीं लगा कि मां कुष्मांडा की पिंडी स्वरूप में लेटी हुई प्रतिमा से पानी कहां से रिसता है, ऐसा बताया जाता है कि सूर्य उदय से पहले स्नान करके 6 महीने तक जो भी इस जल का इस्तेमाल करता है उसकी हर प्रकार की बीमारियां नष्ट हो जाती है।
मां कुष्मांडा के इस मंदिर के परिसर में दो तलाब मौजूद है जो अभी तक सूखे नहीं है, चाहे कोई भी मौसम हो परंतु यह तालाब हमेशा पानी से भरे रहते हैं, जो यहां पर माता के दर्शन करने के लिए भक्त आते हैं वह इस तालाब में नहाने के पश्चात दूसरे तलाब से जल लेकर माता को चढ़ाते हैं, जो भी भक्त अपने सच्चे मन से माता के दरबार में अपना मत्था टेकता है माता रानी उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूरी करती हैं।