अध्यात्म

गणेश जी के इस मंदिर में प्राप्त हुई थी भगवान विष्णु को सिद्धियाँ, इसलिए कहा जाता है सिद्धिविनायक

श्री गणेश को हिंदू धर्म में प्रथम पूज्य देवता के रूप में माना जाता है। भगवान श्री गणेश की पूजा के बाद ही किसी देवी-देवता की पूजा की जाती है तो उसका फल मिलता है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले श्री गणेश की पूजा ज़रूरी होती है। श्री गणेश को ज्ञान के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। बता दें 13 सितम्बर को गणेश चतुर्थी थी। गणेश चतुर्थी से गणेश उत्सव की शुरुआत होती है जो अगले 10 दिनों तक चलती रहती है। गणेश उत्सव की धूम महाराष्ट्र के मुंबई के ज़्यादा देखने को मिलती है।

गणेशोत्सव के इस मौक़े पर आज हम आपको श्री गणेश के एक अद्भुत मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। सिद्धटेक का सिद्धिविनायक मंदिर एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। यह मंदिर ज्ञान के देवता कहे जानें वाले भगवान श्री गणेश को समर्पित है। यह मंदिर अष्टविनायक की सूची में शामिल है। आपकी जानकारी के लिए बता दें महाराष्ट्र में गणेश जी के आठ सम्मानित मंदिर हैं। इसी में से एक मंदिर महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले का अष्टविनायक मंदिर है। बता दें यह मंदिर अहमदनगर जिले के करजत क्षेत्र में सिद्धटेक में भीमा नदी के उत्तरी तट पर स्थित है।

सिद्धटेक को मोरगाँव के बाद अष्टविनायक मंदिरों में आने वाली सूची में दूसरे स्थान पर माना जाता है। हालाँकि कुछ भक्त इसे मोरगाँव और थूर के बाद तीसरे स्थान पर भी मानते हैं। सिद्धटेक में स्थित श्री गणेश की प्रतिमा में उनकी सूंड सीधे हाथ की तरफ़ मुड़ी हुई है। साधारणतौर पर गणेश की की सभी प्रतिमाओं में उनकी सूंड बायीं तरफ़ बनी होती है। ऐसा कहा जाता है कि सीधे हाथ की तरफ़ सूंड वाले गणेश की बहुत ही शक्तिशाली होते हैं। लेकिन इन्हें प्रसन्न करना बहुत कठिन होता है।

इस क्षेत्र में यह एकमात्र अष्टविनायक मंदिर है, जहाँ श्री गणेश की प्रतिमा की सूंड सीधे हाथ की तरफ़ है। परंपरागत रूप से ऐसी प्रतिमा वाले श्री गणेश जी को सिद्धि-विनायक नाम दिया जाता है। यहाँ सिद्धि का अर्थ उपलब्धि या सफलता और अलौकिक शक्तियों का दाता से है। इस मंदिर को जागृत क्षेत्र भी कहा जाता है, जहाँ देवी-देवताओं को अत्यधिक शक्तिशाली माना जाता है। सिद्धटेक सिद्धिविनायक मंदिर बहुत ही सिद्ध स्थान के रूप में प्रतिष्ठित है। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ पर भगवान विष्णु को सिद्धियाँ हासिल हुई थी।

कहा जाता है कि जब अपने कान के मैल से पैदा हुए दो दैत्यों मधु और कैटभ का अंत विष्णु जी लाख कोशिश करने के बाद भी नहीं कर पाए तो वह भगवान शिव की शरण में गए। शिव जी ने बताया कि आप प्रथम पूज्य गणेश जी का आह्वान करना भूल गए, इसीलिए आप असुरों को पराजित नहीं कर पा रहे हैं। इसके बाद भगवान विष्णु सिद्धटेक में तपस्या करने लगे। गणेश जी ने प्रसन्न होकर उन्हें सिद्धियाँ प्रदान की, जिसके बाद उन्होंने असुरों का संहार किया। बता दें सिद्धिविनायक मंदिर पहाड़ की चोटी पर बना हुआ है। इसका मुख्य द्वार उत्तर दिशा की तरफ़ है। मंदिर की परिक्रमा के लिए पहाड़ी की यात्रा करनी होती है। यह श्री गणेश के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है जो लगभग 200 साल पुराना है।

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