भगवान नरसिंह का मंदिर जिसका प्रह्लाद ने करवाया था निर्माण, चंदन के लेप से ढकी रहती है प्रतिमा
भगवान विष्णु जी को जगत का पालनहार बताया जाता है, जब जब धरती पर अधर्म अधिक हुआ है तब-तब भगवान विष्णु जी ने बहुत से अवतार लिए हैं और अलग-अलग अवतारों का धारण करके इन्होंने पृथ्वी पर से अधर्म का नाश किया था, आप लोगों ने भक्त प्रह्लाद के बारे में तो सुना ही होगा, सतयुग के समय में प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु जी ने नरसिंह का अवतार लिया था, तब से ही धरती पर भगवान विष्णु जी को नरसिंह अवतार में पूजा की जाती है, वैसे देखा जाए तो कई स्थानों पर भगवान विष्णु जी के अवतार नरसिंह के मंदिर मौजूद है, परंतु आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में जानकारी देने वाले हैं जिसके बारे में बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण भक्त प्रह्लाद ने करवाया था।
हम आपको भगवान नरसिंह के जिस मंदिर के बारे में जानकारी दे रहे हैं यह मंदिर सिन्हाचलम में है, यह मंदिर विशाखापट्टनम से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर सिंघाचल पर्वत पर स्थित है, इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह बताई जाती है कि यहां पर भगवान नरसिंह माता लक्ष्मी जी के साथ विराजमान है और उनकी प्रतिमा पर चंदन का लेप लगा रहता है, ऐसा बताया जाता है कि केवल वर्ष में एक बार अक्षय तिथि के दिन इस चंदन के लेप को हटाया जाता है, तभी सभी भक्तों को नरसिंह देव की प्रतिमा के दर्शन होते हैं।
अगर हम पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देखें तो भगवान नरसिंह की मूर्ति चंदन के लेप से ढकी हुई रहने के पीछे ऐसा बताया जाता है कि हिरण्यकश्यप का नाश करते समय भगवान नरसिंह बहुत ही क्रोध में आ गए थे और उनका क्रोध शांत नहीं हो पा रहा था, जिसकी वजह से उनका पूरा शरीर गुस्से के कारण जलने लगा था, ऐसी अवस्था में उनके शरीर को ठंडक पहुंचाने के लिए चंदन का लेप लगाया गया था, चंदन का लेप लगाने के पश्चात उनके क्रोध को शांति मिली, तब से ही भगवान नरसिंह की प्रतिमा को चंदन के लेप में रखा जाता है।
इस मंदिर के बारे में ऐसा भी बताया जाता है कि जब प्रह्लाद ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था तब समय के साथ-साथ ये मंदिर धरती की कोख में समा गया था, जिसको दोबारा से पुरुरवा नामक राजा ने बनवाया था, भगवान नरसिंह की प्रतिमा को राजा ने दोबारा से बाहर निकलवा कर स्थापित करवा कर चंदन का लेप लगाया था।
अगर आप भगवान नरसिंह जी के इस मंदिर में जाने का विचार बना रहे हैं तो आप यहां पर आसानी से पहुंच सकते हैं, इसके लिए आपको विशाखापट्टनम तक के लिए रेल, बस या फिर हवाई मार्ग की सुविधा मिल जाएगी, आप विशाखापट्टनम पहुंचने के बाद आप अपना निजी वाहन भी कर सकते हैं या फिर यहां की बस सेवा का भी इस्तेमाल कर सकते हैं, इस मंदिर के अंदर सुबह 4:00 बजे से ही मंगल आरती के साथ दर्शन आरंभ हो जाते हैं, इस मंदिर के अंदर ११:30 से 12:00 बजे तक और दोपहर के टाइम 2:30 से 3:00 तक दर्शन बंद कर दिए जाते हैं और रात को 9:00 बजे भगवान के शयन का समय हो जाता है।