अध्यात्म

पुराणों के अनुसार भगवान गणेश जी ने लिए थे इतने अवतार, जानिए इनके पीछे की कहानियां

जब पृथ्वी पर अधर्म बढ़ने लगता है तब तब इसका नाश करने के लिए हर युग में समय-समय पर भगवान गणेश जी ने अवतार लिया है और इनकी इन्हीं अवतारों के अनुसार पूजा की जाती है पुराणों के अनुसार हर युग में असुर शक्ति को नाश करने के लिए भगवान गणेश जी ने अलग-अलग अवतार लिए हैं और इन अवतारों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है भगवान गणेश जी ने आठ अवतार लिए हैं जो मनुष्य के 8 तरह के दोषों को दूर करता है आज हम आपको इस लेख के माध्यम से भगवान गणेश जी का कौन सा अवतार आपके किस दोष को दूर करता है उनकी कथाओं में इस बात की व्याख्या की गई है।

आइए जानते हैं भगवान गणेश जी के इन 8 अवतारों के बारे में

महोदर अवतार

जब कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया था तो दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने मोहासुर नाम के दैत्य को देवताओं के खिलाफ खड़ा किया था मोहासुर से छुटकारा प्राप्त करने के लिए देवताओं ने गणेश जी की उपासना की थी तब गणेश जी ने महोदर अवतार लिया था महोदर यानि बड़े पेट वाला वह मूषक पर सवार होकर मोहासुर के नगर में गए और मोहनपुर ने बिना युद्ध किए ही भगवान गणेश जी को अपना इष्ट बना लिया था।

वक्रतुंड अवतार

भगवान गणेश जी ने इस अवतार का धारण राक्षस मत्सरासुर के पुत्रों का वध करने के लिए किया था यह राक्षस भगवान शिव जी का भक्त था और इसने भगवान शिवजी की कठोर तपस्या करके इनसे यह वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसे किसी का भी भय नहीं रहेगा मत्सरासुर ने देव गुरु शुक्राचार्य के आदेश से देवताओं को परेशान करना आरंभ कर दिया उसके दो पुत्र भी थे जिनका नाम सुंदरप्रिय और विषयप्रिय था यह दोनों ही बहुत अत्याचारी स्वभाव के थे जब देवताओं को यह राक्षस परेशान करने लगे तो इससे परेशान होकर सभी देवता भगवान शिव जी की शरण में गए तब शिव जी ने आश्वासन दिया था कि वह गणेश जी का आवाहन करें तब भगवान गणेश जी ने वक्रतुंड अवतार लिया था और मत्सरासुर के दोनों पुत्रों का संघार किया और मत्सरासुर को भी पराजित कर दिया था बाद में मत्सरासुर भगवान गणेश जी का भक्त बन गया था।

विकट अवतार

जब भगवान विष्णु जी ने जलंधर नाम के राक्षस के विनाश के लिए उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग किया तब उससे एक राक्षस पैदा हुआ जिसका नाम कामासुर था कामासुर ने भगवान शिवजी की आराधना करके त्रिलोक विजय का वरदान प्राप्त कर लिया था इसके पश्चात उसने देवताओं के ऊपर अत्याचार करना आरंभ कर दिया तब सभी देवताओं ने गणेशजी की आराधना की तब भगवान गणेश जी ने विकट रूप में अवतार लिया था विकट रूप में भगवान मोर पर विराजित होकर अवतरित हुए थे उन्होंने देवताओं को अभय वरदान देकर कामासुर को पराजित किया था।

एकदंत अवतार

जब महर्षि च्यवन ने अपने तपोबल से मद नाम के राक्षस की रचना की थी तब वह महर्षि च्यवन का पुत्र कहलाया था मद ने दैत्य गुरु शुक्राचार्य से दीक्षा ली थी शुक्राचार्य ने इनको हर तरह की विद्या में निपुण बनाया था शुक्राचार्य से विद्या ग्रहण करने के पश्चात उसने देवताओं का विरोध करना आरंभ कर दिया और सभी देवताओं को परेशान करने लगा तब सभी देवताओं ने मिलकर भगवान गणेश जी की आराधना की तब भगवान गणेश जी ने एकदंत का रूप धारण किया एकदंत ने देवताओं को अभय वरदान दिया और मदासुर को युद्ध में पराजित किया था।

लंबोदर अवतार

सूर्य देव की उपासना करके क्रोधासुर नाम के राक्षस ने ब्रह्मांड विजय का वरदान प्राप्त कर लिया था उसको जब यह वरदान मिला तो सारे देवता भयभीत हो गए तब वह युद्ध करने के लिए निकल पड़े तब भगवान गणेश जी ने लंबोदर रूप धारण करके उसे रोक लिया था क्रोधासुर को भगवान गणेश जी ने समझाया और उसे यह आभास दिलाया कि वह संसार में कभी भी अजेय योद्धा नहीं हो सकता तब क्रोधासुर ने अपना विजय अभियान रोक दिया और वह सब कुछ छोड़कर पताल लोक चला गया था।

गजानंद अवतार

लोभासुर का जन्म धनराज कुबेर से हुआ था तब वह शुक्राचार्य की शरण में चला गया था और उसने शुक्राचार्य के आदेश पर शिवजी की उपासना आरंभ की थी भगवान शिवजी लोभासुर से अति प्रसन्न हुए थे और उन्होंने उसको निर्भय होने का वरदान दिया था इसके पश्चात लोभासुर ने सारे लोको पर अपना हक जमा लिया था तब देवगुरु ने सारे देवताओं को गणेश जी की उपासना करने की सलाह दी थी तब भगवान गणेश जी ने गजानंद रूप में दर्शन दिए और देवताओं को वरदान दिया कि मैं लोभासुर को पराजित करूंगा तब गणेश जी ने लोभासुर को युद्ध के लिए संदेश भेजा था शुक्राचार्य की सलाह पर लोभासुर ने बिना युद्ध किए ही अपनी हार स्वीकार की थी।

धूम्रवर्ण अवतार

सूर्य देवता को एक बार छींक आ गई थी और उनकी छींक से एक दैत्य की उत्पत्ति हुई थी जिसका नाम अहम था वह शुक्राचार्य के पास गया और उन्हें गुरु बना लिया वह अहम से अहंतासुर हो गया तब उसने खुद का एक राज्य बसा लिया था और गणेश जी को अपनी तपस्या से प्रसन्न करके वरदान प्राप्त किया था उसने बहुत ही अत्याचार फैलाना शुरू कर दिया तब गणेश जी ने धूम्रवर्ण के रूप में अवतार लिया था उनका रंग धुएं जैसा था और वह बहुत विकराल थे उनके हाथ में भीषण पाश था जिससे बहुत सी ज्वालाएं निकलती थी धूम्रवर्ण के रूप में गणेश जी ने अहंतासुर को पराजित कर दिया था उसे युद्ध में पराजित करके अपनी भक्ति प्रदान की थी।

विघ्नराज अवतार

जब माता पार्वती अपनी सहेलियों के साथ बातचीत कर रही थी तो उस दौरान वह जोर से हंस पड़ी थी उनकी हंसी से एक विशाल पुरुष की उत्पत्ति हुई थी पार्वती जी ने उसका मम नाम रखा था वह माता पार्वती से मिलने के पश्चात वन में तप करने के लिए चला गया था वही वह शंबरासुर से मिला और उसने मम को कई असुर शक्तियां सिखा दी उसने मम को गणेश जी की उपासना करने को कहा तब भगवान गणेश जी की उपासना करके ब्रह्मांड राज मांग लिया था शुक्राचार्य ने उनके तप के बारे में सुना तो उसे दैत्यराज के पद पर विभूषित कर दिया तब उसने अत्याचार करना आरंभ कर दिया और सभी देवताओं को अपना बंदी बना लिया तब देवताओं ने गणेश जी की उपासना की और भगवान गणेश जी विघ्नेश्वर के रूप में अवतरित हुए तब उन्होंने देवताओं को उसके चंगुल से छुड़ाया था।

Related Articles

Leave a Reply

Back to top button