अध्यात्म

केदारनाथ धाम में ईश्वर के चमत्कार की वजह से 6 महीने तक अपने आप जलता रहता है दीपक

भारत मंदिरों के देश के नाम से भी जाना जाता है। इसकी सबसे ख़ास वजह यह है कि यहाँ मंदिरों की भरमार है। भारत की गली-गली में कोई ना कोई मंदिर स्थित है। कुछ मंदिर इतने ज़्यादा प्राचीन हैं कि उनके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है। वहीं कई मंदिर अपने चमत्कार की वजह से केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं। देवभूमि ने नाम से प्रसिद्ध उत्तराखंड में ऐसे कई चमत्कारिक मंदिर हैं, जो अपने चमत्कार की वजह से पूरे देश के साथ-साथ विदेशों में भी प्रसिद्ध हैं।

12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है केदारनाथ धाम:

आज हम आपको उत्तराखंड के एक ऐसे ही चमत्कारी और दिव्य मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। जी हाँ हम जिस मंदिर की बात कर रहे हैं, वह कोई और नहीं बल्कि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में स्थित केदारनाथ धाम है। यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। यह मंदिर तीन तरफ़ से केदारनाथ, ख़र्चकुंड, भरतकुंड पहाड़ियों से ढका हुआ है। इसके साथ ही यहाँ मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी नदियों का भी संगम है। इनमें से केवल आज के समय में अलकनंदा और मंदाकिनी ही मौजूद हैं।

ज्योतिर्लिंग के रूप में यहीं बसने का दिया वरदान:

आपकी जानकारी के लिए बता दें सर्दियों के समय में यह मंदिर पूरी तरह से बर्फ़ से ढक जाता है। उस समय मंदिर के कपाट दर्शन के लिए बंद कर दिए जाते हैं। बैशाखी के बाद मंदिर के कपाट पुनः खोल दिए जाते हैं। बता दें हिंदुओं के प्रसिद्ध चार धामों में से दो बद्रीनाथ और केदारनाथ उत्तराखंड में ही स्थित है। प्राचीन कथा के अनुसार हिमालय के केदार ऋंग पर भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण तपस्या कर रहे थे। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया और उनके कहे अनुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में वहीं बसने का भी वरदान दिया।

मंदिर की दीवारों पर मौजूद हैं पौराणिक कथाएँ और चित्र:

आपकी जानकारी के लिए बता दें समुद्र तल से लगभग 3584 मीटर की ऊँचाई पर स्थित केदारनाथ धाम मंदिर 85 फ़ीट ऊँचा, 187 फ़ीट लम्बा और 80 फ़ीट चौड़ा है। मंदिर को 6 फ़ीट उन्हें चौकोर चबूतरे पर बनाया गया है। ऐसा माना जाता है कि केदारनाथ मंदिर बहुत ही पुराना है। मंदिर दो भागों गर्भगृह और मंडप में बँटा हुआ है। बड़े-बड़े पत्थरों को काटकर बनाया गया यह अद्भुत मंदिर आज भी वैसे ही स्थित है। मंदिर के मुख्य द्वार पर नंदी बैल विराजित है। मंदिर की दीवारों पर पौराणिक कथाओं और चित्रों को देखा जा सकता है।

आमतौर पर केदारनाथ मंदिर सुबह 4 बजे ही खुल जाता है। लेकिन आम लोगों के दर्शन के लिए इसे 6 बजे ही खोला जाता है। दोपहर में 3 बजे से 5 बजे के बीच विशेष पूजा के लिए मंदिर को बंद रखा जाता है। पंचमुखी भगवान शिव का ऋंगार करके 7:30 बजे से 8:30 बजे तक आरती होती है। 9 बजे मंदिर के कपाट को बंद कर दिया जाता है। दिवाली के दूसरे दिन मंदिर के द्वार को बंद कर दिया जाता है। पूरे 6 महीने तक मंदिर के कपाट बंद रहते हैं, उसके बाद खोला जाता है। उस दौरान केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को पहाड़ के नीचे ऊखीमठ ले जाकर वहाँ इनकी पूजा की जाती है। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि जब मंदिर 6 महीने के लिए बंद रहता है तब भी इसका दीपक जलता रहता है।

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