देवी मां का अनोखा मंदिर जहां भक्त चढ़ाते हैं चप्पल-सैंडल, हिंदू और मुस्लिम दोनों करते हैं पूजा
दुनिया भर में भारत धार्मिक देश माना जाता है, हमारे देश में भिन्न-भिन्न जाति के लोग रहते हैं और अपने देवी देवताओं की पूजा करते हैं, भारत देश में कदम कदम पर बहुत से मंदिर मौजूद है, इसके अलावा ऐसे बहुत से प्रसिद्ध मंदिर भी है जो अपनी किसी ना किसी विशेषता के लिए दुनिया भर में मशहूर है, इन मंदिरों के प्रति लोगों का अटूट विश्वास रहता है, अक्सर इन मंदिरों के अंदर कोई ना कोई ऐसा चमत्कार होता रहता है जिसके आगे सभी नतमस्तक हैं, भगवान पर आस्था रखने वाले लोगों के लिए यह चमत्कार बहुत मायने रखते हैं परंतु जो आस्था पर विश्वास नहीं रखता है उनके लिए यह एक अंधविश्वास के समान होता है, आप लोगों ने तो यह सुना ही होगा “मानो तो भगवान, ना मानो तो पत्थर” हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में जानकारी देने वाले हैं जिस मंदिर के अंदर हिंदू हो या मुसलमान दोनों ही पूजा करते हैं और यहां पर चप्पल सैंडल अर्पित किया जाता है।
आप लोगों में से कई लोग ऐसे होंगे जो भगवान को चप्पल सैंडल अर्पित करने के बारे में सुनकर सोच में पड़ गए होंगे? आपके मन में यही सवाल घूम रहा होगा कि भला ऐसा कौन सा मंदिर है जहां पर भगवान को मिठाई-फूल की जगह चप्पल सैंडल अर्पित किया जाता है दरअसल, हम जिस मंदिर के बारे में आपको बता रहे हैं यह मंदिर कर्नाटक के गुलबरगा में है, इस मंदिर को लकम्मा देवी मंदिर के नाम से लोग जानते हैं, यह मंदिर लक्ष्मी देवी का है, ऐसा बताया जाता है कि यहां पर एक नीम का पेड़ मौजूद है उसी पर यहां पर आने वाले सभी भक्त माता को चप्पल और सैंडल अर्पित करते हैं, मान्यता अनुसार देवी माता रात में इन चप्पल और सैंडल को पहनती है।
यहां के लोगों का ऐसा मानना है कि माता को अगर चप्पल और सैंडल अर्पित किया जाए तो इससे लोगों के सभी दुख दर्द दूर हो जाते हैं, ऐसा बताया जाता है कि जिन लोगों के पैर और घुटनों में दर्द की परेशानी रहती है अगर वह माता को चप्पल और सैंडल अर्पित करता है तो उसकी शारीरिक परेशानियां हमेशा के लिए दूर हो जाती है, इस मंदिर के अंदर पैर और दर्द से परेशान लोगों की भारी भीड़ लगी रहती है, ऐसा कहा जाता है कि पहले इस मंदिर के अंदर बैलों की बलि दी जाती थी लेकिन बाद में सरकार ने इस पर पाबंदी लगा दी थी, जब बैलों की बलि पर पाबंदी लगा दी गई तब यहां पर भक्त चप्पल अर्पित करने लगे, तभी से यह परंपरा आरंभ हो गई थी, जो आज भी निभाई जा रही है।
अगर हम इस मंदिर की विशेष बात बताएं तो इस मंदिर के पुजारी मुस्लिम बनते हैं, ऐसा बताया जाता है कि मुस्लिम अपनी इच्छा से इस मंदिर के पुजारी बनते हैं, इस मंदिर के अंदर हिंदू धर्म और मुस्लिम धर्म को मानने वाले दोनों ही लोग पूजा करने के लिए आते हैं और माता को चप्पल और सैंडल अर्पित करते हैं, दीपावली के पश्चात आने वाली पंचमी को यहां पर बहुत बड़े मेले का आयोजन होता है, इस मेले में दूर-दूर से भक्त भारी तादाद आते हैं और यहां पर मौजूद नीम के पेड़ पर चप्पल और सैंडल लटकाते हैं, इसको “फुटवियर फेस्टिवल” के नाम से भी जाना जाता है, जो यहां पर अपनी श्रद्धा से माता को चप्पल सैंडल अर्पित करता है उसकी सभी परेशानियां माता रानी हर लेती हैं।