गणेश चतुर्थी: जानिए क्यों श्री गणेश को कहा जाता है एकदंत और किस तरह से उन्हें यह स्वरूप मिला
गुरुवार 13 सितम्बर को गणेश चतुर्थी का पर्व पूरे भारत में बड़े धूम-धाम से मनाया जा रहा है। इस अवसर पर घरों में श्री गणेश 10 दिन के लिए मेहमान बनकर आते हैं। हर रोज़ श्री गणेश की पूजा की जाती है और उन्हें भोग लगाया जाता है। आज गणेश चतुर्थी के मौक़े पर हम आपको श्री गणेश के बारे में कुछ ऐसी बातें बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में बहुत कम लोगों को पता है। जी हाँ यह बात तो सभी लोग जानते होंगे कि श्री गणेश भगवान शंकर और माता पार्वती की संतान हैं।
अच्छी सेहत के लिए करते हैं श्री गणेश की आराधना:
श्री गणेश की पूरी आकृति में सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा उनके सूंड को माना जाता है। श्री गणेश के दो कान हैं और किसी आम व्यक्ति की तरह ही उनका बड़ा सा पेट भी है। श्री गणेश को विघ्नहर्ता के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि ये लोगों की परेशानियों का हरण करके उहे ख़ुशी देते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हिंदू धर्म में सबसे ज़्यादा पूजे जानें वाले 5 देवी-देवताओं में श्री गणेश भी शामिल हैं। पढ़ाई, ज्ञान, धनलाभ और अच्छी सेहत के लिए लोग श्री गणेश की आराधना करते हैं।
शनिदेव सिर झुकाकर खड़े थे:
शिव महापुराण के अनुसार श्री गणेश का शरीर लाल और हरे रंग का होता है। ब्रह्मावैवर्त पुराण के अनुसार, माता पार्वती ने संतान पानें के लिए एक पुण्यक व्रत रखा था। माना जाता है कि इसी व्रत की महिमा से माता पार्वती को श्री गणेश जी संतान के रूप में मिले थे। ब्रह्मावैवर्त पुराण के अनुसार, जब सभी भगवान श्री गणेश को आशीर्वाद दे रहे थे, उस समय शनिदेव सिर झुकाए खड़े थे। यह देखकर माता पार्वती ने उनसे सिर झुकाकर खड़े होने का कारण पूछा। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि अगर वो गणेश जी को देखेंगे तो उनका सिर शरीर से अलग हो जाएगा।
भगवान शिव ने ग़ुस्से में सूर्यदेव के ऊपर किया था त्रिशूल से हमला:
लेकिन माता पार्वती की ज़िद के बाद शनिदेव ने श्री गणेश की तरफ़ देख ही लिया। इसके बाद उनका सिर शरीर से अलग हो गया। इसके बाद श्रीहरि ने अपना गरुड़ उत्तर दिशा की तरफ़ भेजा, जो पुष्प भद्रा नदी की तरफ़ जा पहुँचा। वहाँ पर एक हथिनी आने नवजात बच्चे के साथ सो रही थी। श्रीहरि ने गरुड़ की मदद से हथिनी के बच्चे का सिर काटकर श्री गणेश के शरीर पर लगा दिया था। इसके बाद एकबार फिर श्री गणेश को जीवन मिला। इसी पुराण के अनुसार एक बार शिव जी ने सूर्यदेव के ऊपर ग़ुस्से से त्रिशूल से प्रहार किया था। इस वजह से सूर्यदेव के पिता बहुत क्रोधित हो गए थे। उन्होंने शिव जी को श्राप दिया कि जिस तरह से उनके पुत्र के शरीर को नुक़सान पहुँचाया है, उसी तरह से एक दिन शिव के पुत्र यानी गणेश के शरीर को भी नुक़सान पहुँचेगा।
ब्रह्मावैवर्त पुराण के अनुसार एक दिन परशुराम भगवान शिव से मिलने के लिए कैलाश मंदिर गए थे। उस समय भगवान शिव ध्यान में लीन थे, जिसकी वजह से श्री गणेश से अपने पिता यानी भगवान शिव से परशुराम को मिलने नहीं दिया। इस बात से परशुराम बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने श्री गणेश पर हमला कर दिया। परशुराम ने भगवान शिव के दिए हुए हथियार से ही हमला किया। श्री गणेश नहीं चाहते थे कि परशुराम द्वारा उनपर किया गया वार ख़ाली जाए, क्योंकि हथियार स्वयं उनके पिता ने दिया था। उस हमले के दौरान चोट श्री गणेश के दाँत पर लगी और उनका एक दाँत टूट गया। तभी से उन्हें एक दंत के नाम से जाना जानें लगा। गणेश पुराण के अनुसार व्यक्ति के शरीर का मूलाधार चक्र गणेश भी कहा जाता है।