कुछ भी दान करने से पहले जान लीजिए इसके नियम, तभी आपको मिलेगा इसका पुण्य
शास्त्रों में यह स्पष्ट तौर पर बताया गया है कि हर व्यक्ति को अपनी कमाई का 10 फ़ीसदी भाग दान अवश्य करना चाहिए, सनातन धर्म में दान का विशेष महत्व बताया गया है, अगर हम पुराने समय की बात करें तो ज्यादातर सभी लोग दान किया करते थे परंतु जैसे-जैसे समय बदलता जा रहा है लोगों की मानसिकता भी बदलती जा रही है, वर्तमान समय में ऐसे कुछ ही लोग होंगे जो दान करते होंगे, परंतु आपको इस बात की जानकारी बता दें कि जो व्यक्ति अपनी कमाई का दसवां भाग दाने नहीं करते उनको चोर की संज्ञा दी जाती है. अब आपके मन में यह सवाल आ रहा होगा कि आखिर कोई भी चीजें दान की जाए तो उसकी सही विधि क्या है?
दरअसल, शास्त्रों में दान करने की सही विधि के बारे में उल्लेख किया गया है, आज हम आपको इस पोस्ट के माध्यम से आखिर दान करने के नियम शास्त्रों में क्या बताए गए हैं इसके बारे में जानकारी देने वाले हैं।
दान करने के नियम
- जैसा कि हमने आपको पहले बताया है कि हर व्यक्ति को अपनी आमदनी की न्यूनतम यानी 10% भाग दान अवश्य करना चाहिए।
- अगर आप किसी भी चीज का दान करते हैं तो आप इस बात का ध्यान रखें कि आप उसी व्यक्ति को दान दीजिए जो दान देने योग्य है।
- आप दान के रूप में सदैव धार्मिक रीति से धन, संपत्ति अथवा द्रव्य का दान कर सकते हैं।
- अगर आपके पास किसी भी प्रकार की धरोहर या अमानत रखी है तो आप उसका दान ना करें।
- व्यक्ति को कभी भी कर्जा लेकर दान नहीं करना चाहिए।
- अगर आपने अपने बुरे समय के लिए धन सुरक्षित रखा है तो आप कभी भी उस धन का दान ना करें।
- दान करते समय आपका मन प्रसन्न और निस्वार्थ होना चाहिए तभी आपको इसका फल मिल पाएगा।
- अगर आप कोई भी चीज अपने मन में क्रोध या द्वेष की भावना से दान करते हैं तो इसका फल आपको नहीं मिलता है।
- अगर आप कोई भी चीज किसी डर की वजह से दान करते हैं तो वह दान नष्ट हो जाता है।
- अगर आप किसी को कुछ दान के रूप में देते हैं और उसके बदले आप कुछ अपेक्षा रखते हैं तो वह दान निष्फल होता है।
यह दान माने जाते हैं महादान
शास्त्रों में दान से जुड़ी हुई बहुत से बातों का उल्लेख किया गया है, इसमें कुछ ऐसी वस्तुओं का उल्लेख किया गया है जिसको महादान माना जाता है, अगर कोई व्यक्ति गाय, भूमि, तिल, स्वर्ण यानी सोना, रजत यानी चांदी, घी, वस्त्र, धान्य, गुड़, नमक का दान करता है तो यह सभी दान महादान की श्रेणी में आते हैं।
शास्त्रों में साफ तौर पर इस बात का जिक्र किया गया है कि व्यक्ति को बिना किसी स्वार्थ के दान करना चाहिए, अगर दान करने के पीछे कोई स्वार्थ छुपा है तो व्यक्ति को दान का फल नहीं मिल पाता है, अगर आप कोई चीज दान करते हैं तो यह आपको परलोक में भी प्राप्त होता है, अगर आप कुपात्र और अयोग्य व्यक्ति को दान देते हैं तो आपको उसका फल वर्तमान काल में ही भोगना पड़ता है उसके बाद इस दान का फल नष्ट हो जाता है।