अध्यात्म

अपने आख़िरी समय में भगवान श्रीकृष्ण को कर्ण ने इस तरह दिया था अपने दानवीर होने का परिचय

महाभारत हिंदू धर्म का सबसे पवित्र पुराण माना जाता है। महाभारत से लोगों को जीवन के कई सीख मिलते हैं। महाभारत में वो सभी बातें बताई गयी हैं, जो एक मनुष्य के जीवन को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक होती हैं। एक मनुष्य को अपने जीवन में किस तरह से व्यवहार करना चाहिए और उसे ऐसे कौन-कौन से काम हैं, जिससे बचना चाहिए, इसके बारे में भी बताया गया है। इसी वजह से महाभारत को बहुत ही पवित्र और उपयोगी माना जाता है।

अगर महाभारत की बात की जाए तो इसमें कई पत्र थे और सबकी अपनी-अपनी ख़ासियत थी। इसमें अच्छाई और बुराई के बीच की जंग के बारे में बताया गया है। रामायण से एक सीख यह भी मिलती है कि सत्य परेशान ज़रूर होता है, लेकिन हारता नहीं है। आख़िरकार सत्य का साथ देने वालों की ही जीत होती है। इसके साथ ही कि अगर धर्मयुद्ध में अपने लोगों को भी मारना पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए। ख़ैर महाभारत के सूर्यपत्र कर्ण के बारे में तो आप जानते ही होंगे। यह महाभारत के एक बहुत ही ख़ास पात्र थे।

श्रीकृष्ण ने ली थी कर्ण की परीक्षा:

कर्ण को उनकी दोस्ती, उनकी वीरता और उनके दानवीर होने की वजह से आजतक याद किया जाता है। कर्ण के बारे में कहा जाता है कि आजतक उनसे बड़ा कोई दानी पैदा नहीं हुआ। केवल यही नहीं भगवान श्रीकृष्ण भी कर्ण को सबसे बड़ा दानी मानते थे। लेकिन यह बात अर्जुन को पसंद नहीं थी। कर्ण की मृत्यु के समय भगवान श्रीकृष्ण उनकी परीक्षा लेने गए और कर्ण की दानवीरता के बारे में जानकर प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान भी दिया।

आपका दानवीर कर रहा है मौत का इंतज़ार:

युद्धभूमि में जब कारण घायल हो गए और अपनी मृत्यु का इंतज़ार कर रहे थे, तभी अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि आपका दानवीर मौत का इंतज़ार कर रहा है। इसपर श्रीकृष्ण ने कहा कि कर्ण को उसकी वीरता और दानवीर होने की वजह से हमेशा याद किया जाएगा। कृष्ण की बात सुनकर अर्जुन ने कहा कि वो सबसे बड़ा दानवीर कैसे हो सकता है? इस बात को साबित करने के लिए श्रीकृष्ण एक ब्राह्मण का वेश धारण करके कर्ण के पास गए और उसे प्रणाम किया। जब कर्ण ने ब्राह्मण से आने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि कुछ दान माँगने आया हूँ।

ब्राह्मण ने कहा कि लेकिन आपकी यह हालत देखकर मैं आपसे कुछ नहीं माँगना चाहता हूँ, क्योंकि आप इस हालत में क्या दे सकेंगे। यह सुनकर कर्ण ने पास पड़े हुए पत्थर को उठाया और अपना सोने का दाँत तोड़कर ब्राह्मण को दे दिया। कर्ण की इस दानवीरता को देखकर भगवान श्रीकृष्ण अपने असली रूप में आया और कर्ण से वरदान माँगने के लिए कहा। कर्ण ने भगवान श्रीकृष्ण से अपने साथ हुए अन्याय को याद करते हुए अगले जन्म में उसके वर्ग के लोगों के कल्याण के लिए कहा। दूसरे वरदान के रूप में कर्ण ने कृष्ण का जन्म अपने राज्य में लेने को माँगा और तीसरे वरदान के रूप में कहा कि उनका अंतिम संस्कार कोई ऐसा व्यक्ति करे जो पाप मुक्त हो। इसी वजह से श्रीकृष्ण ने कर्ण का अंतिम संस्कार अपने हाथों से किया।

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