15 अप्रैल को मनाई जाएगी कलाष्टमी, इस विधि से काल भैरव की करे पूजा, अनेक इच्छाएं होंगी पूरी
मनुष्य अपने जीवन में सुख शांति प्राप्त करना चाहता है, हर कोई व्यक्ति चाहता है कि उसके घर परिवार में सुख समृद्धि बनी रहे, लेकिन सिर्फ चाहने से कुछ नहीं होता है, इसके लिए मनुष्य को कठिन मेहनत करनी पड़ती है, लेकिन कई बार देखा गया है कि अधिक मेहनत करने के बावजूद भी व्यक्ति के जीवन में सुख शांति नहीं आती है, लेकिन कुछ ऐसे शुभ दिन होते हैं जिनमें अगर विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना की जाए तो इससे व्यक्ति को लाभ मिलता है, आपको बता दें कि 15 अप्रैल 2020 को कालाष्टमी व्रत पूजा है, वैसे तो प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी मनाई जाती है, परंतु वैशाख मास की कालाष्टमी तिथि का बहुत अधिक महत्व माना गया है, इस दिन व्यक्ति व्रत रखकर विशेष रूप से भगवान शिव जी के काल भैरव रूप की पूजा करता है, इस दिन दुर्गा माता की भी पूजा की जाती है, यदि आप विधि-विधान पूर्वक इस दिन पूजा करेंगे तो इससे आपको कई प्रकार के फायदे मिल सकते हैं, कालाष्टमी को भैरवाष्टमी के नाम से भी लोग जानते हैं, अगर आप अपने घर में सुख, शांति और समृद्धि बनाए रखना चाहते हैं तो आज हम आपको कालाष्टमी के दिन किस प्रकार पूजा करें इसके बारे में जानकारी देने वाले हैं, अगर आप इस विधि से पूजा करते हैं तो इससे आपको लाभ मिलेगा।
कालाष्टमी के दिन इस प्रकार करें पूजन
जैसा कि आप लोग जानते हैं काल भैरव भगवान शिव जी के ही रूप हैं, नारद पुराण में इस बात का उल्लेख किया गया है कि अगर व्यक्ति कालाष्टमी के दिन काल भैरव के साथ साथ मां दुर्गा की पूजा करता है तो इससे उसके जीवन की बहुत सी परेशानियां दूर होती हैं, इतना ही नहीं बल्कि काल भैरव और मां दुर्गा की पूजा करने से व्यक्ति की समस्त मनोकामनाएं भी पूरी हो सकती है, अगर आप कालाष्टमी तिथि की रात को भैरव बाबा के साथ-साथ महाकाली की विधि विधान पूर्वक पूजा करते हैं और आधी रात को उनके मंत्रों का जाप करते हैं तो इससे माता रानी आपसे प्रसन्न होंगी, परंतु आपको इस बात का ध्यान रखना होगा कि पूजा करने से पहले आप रात में भगवान शिव जी और माता पार्वती जी की कथा पढ़ें या फिर आप यह कथा सुन भी सकते हैं, जिन लोगों ने कालाष्टमी का व्रत किया है वह सिर्फ फलाहार ही करें और आप काल भैरव की सवारी कुत्ते को कुछ ना कुछ खाने के लिए दीजिए।
जानिए कालाष्टमी की पौराणिक कथा
अगर हम कालाष्टमी के एक पौराणिक कथा के अनुसार देखें तो एक बार ब्रह्मा जी, विष्णु जी और महेश जी में लड़ाई चल रही थी कि तीनों में सबसे श्रेष्ठ कौन है? इस बात पर बहस लगातार बढ़ती जा रही थी, तब सभी देवताओं को बुलाकर बैठक की गई थी, और सभी से यह प्रश्न पूछा गया था कि हम तीनों में से सबसे श्रेष्ठ कौन है और तब इस पर सभी देवताओं ने अपने-अपने विचार रखे थे, इस बीच बहस में भगवान शिवजी क्रोधित हो गए, तब शिवजी के क्रोध से एक अद्भुत शक्ति का जन्म हुआ था जिसको काल भैरव कहा जाता है, तब काल भैरव जी ने देवों के विवाद का समाधान किया था, महादेव के अंश काल भैरव है, जिस दिन काल भैरव महादेव के अंश रूप में उत्पन्न हुए थे उस दिन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि थी, इसी वजह से हर महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी तिथि के रूप में मनाया जाता है, शास्त्रों में इस बात का उल्लेख किया गया है कि जो इस दिन अपनी पूरी श्रद्धा भाव से पूजा करता है और व्रत करता है तो उसकी समस्त मनोकामना पूरी होती है।