केवल 80 रुपए से बनाया 800 करोड़ का कारोबार, जानिए कैसे हुआ यह करिश्मा
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अगर आपका जन्म 90 के दशक में हुआ होगा तो आपको याद होगा कि उस समय किसी-किसी के पास ही टीवी हुआ करती थी। अगर किसी के घर पर टीवी थी भी तो वो ब्लैक एंड वाइट टीवी हुआ करती थी। टीवी पर आने वाली फ़िल्म और धारावाहिकों के बीच में आने वाले विज्ञापनों में एक ऐसा विज्ञापन भी था जो काफ़ी चर्चित था। “कर्रम कुर्रम-कुर्रम कर्रम” के जिंगल के साथ लिज्जत पापड़ का एड आता था। लिज्जत पापड़ के बारे में किसी को बताने की ज़रूरत नहीं है। यह एक ऐसा पापड़ है जिसके बारे में देश का हर व्यक्ति जानता है।
जिस समय देश आर्थिक उदारीकरण के आग़ोश में था, उस समय देश की जनता लिज्जत पापड़ का स्वाद चख रही थी। इसका स्वाद हर घर तक पहुँच रहा था। देखते ही देखते यह बेजान सा पापड़ एक बड़ा ब्राण्ड बन गया। आपकी जानकारी के लिए बता दें गुज़राती में लिज्जत का मतलब होता है स्वाद। लिज्जत पापड़ ब्राण्ड के एक नया कीर्तिमान हासिल किया है। आज हम आपको बताएँगे कि किस तरह से 80 रुपए का लोन लेकर शुरू किया गया यह बिज़नेस आज 800 करोड़ तक पहुँच गया है।
मेहनत और हुनर से चल पड़ी कम्पनी:
इसकी शुरुआत होती है 1950 से, जब गुज़ारत की सात महिलाओं ने पापड़ बनाने का काम शुरू किया। पापड़ बनाने पर सहमति इसलिए बनी, क्योंकि ये महिलाएँ केवल यही करना जानती थीं। उनके पास सबसे बड़ी समस्या यह थी कि उनके पास इस बिज़नेस को चलाने के लिए पैसे नहीं थे। इस वजह से उन्होंने एक सामाजिक कार्यकर्ता छगनलाल कमरसी पारेख से 80 रुपए उधार लेकर काम शुरू करना पड़ा। इस पैसे से पापड़ को एक उद्योग में बदलने के लिए ज़रूरी चीज़ें ख़रीदी गयी। मेहनत और हुनर की वजह से काम चल पड़ा और कम्पनी खड़ी हो गयी।
15 मार्च 1959 को मशहूर व्यापारी भूलेश्वर मुंबई के एक मशहूर बाज़ार में इस पापड़ को बेचने जाने लगे। उस समय महिलाएँ दो ब्राण्ड के पापड़ बनाया करती थीं। एक पापड़ सस्ता था और दूसरा थोड़ा महँगा था। उस समय छगनलाल ने महिलाओं को सलाह दी कि वो अपनी गुणवत्ता के साथ समझौता ना करें। महिलाओं ने उनकी बात मानते हुए केवल गुणवत्ता वाले पापड़ बनाने पर ही अपना ध्यान लगाना शुरू किया। लिज्जत ने सहकारी योजना के तहत विस्तार करना शुरू कर दिया। देखते ही देखते इस बिज़नेस में 25 लड़कियाँ काम करने लगीं। पहले साल कम्पनी ने 6196 रुपए का बिज़नेस किया।
43 हज़ार महिलाओं को मिला काम:
धीरे-धीरे लोगों के प्रचार और समाचार पत्रों में लिखे जाने वाले लेखों के माध्यम से यह मशहूर होने लगा। काम का आलम यह तह कि दूसरे ही साल इस कम्पनी में कुल 300 महिलाओं ने काम करना शुरू कर दिया। वर्ष 1962 में पापड़ का नाम लिज्जत और संगठन का नाम श्री महिला उद्योग लिज्जत पापड़ रखा गया था। आज बाज़ार में इस ब्राण्ड के पापड़ के साथ ही कई अन्य चीज़ें भी मौजूद हैं। याहू की एक रिपोर्ट की मानें तो लिज्जत पापड़ के सफल सहकारी रोज़गार ने लगभग 43 हज़ार महिलाओं को काम दिया है।