इस रहस्यमई मंदिर में भोलेनाथ से पहले रावण की होती है पूजा, जानिए आखिर क्यों होता है ऐसा?
हमारा भारत वर्ष धार्मिक देश माना जाता है, हमारे भारत देश में कदम कदम पर बहुत से मंदिर मौजूद है, आप लोगों को भारत देश में देवी देवताओं के ऐसे बहुत से मंदिर मिल जाएंगे जिनकी कोई ना कोई अपनी खासियत और विशेषता है, इन मंदिरों में अक्सर लोगों की अटूट आस्था देखने को मिलती है, क्योंकि इस मंदिर के रहस्य और उनके चमत्कार लोगों को काफी प्रभावित करता है जिसके चलते लोगों का विश्वास इन मंदिरों के प्रति और अधिक बढ़ जाता है, वैसे भगवान शिव जी के मंदिर कई जगह स्थित है, और इन मंदिरों का अपना अलग ही महत्व माना गया है परंतु आज हम आपको शिव जी के एक ऐसे मंदिर के बारे में जानकारी देने वाले हैं जिस मंदिर के अंदर भगवान शिव जी से पहले रावण की पूजा की जाती है जी हां, आप लोग बिल्कुल सही सुन रहे हैं इस मंदिर के अंदर भगवान शिव जी से पहले लोग रावण की आराधना करते हैं, आखिर इसके पीछे वजह क्या है? चलिए इसके बारे में जान लेते हैं।
दरअसल, हम जिस मंदिर के बारे में आपको जानकारी दे रहे हैं यह मंदिर झीलों की नगरी उदयपुर से लगभग 80 किलोमीटर झाडौल तहसील में आवारगढ़ की पहाड़ियों पर शिवजी का एक प्राचीन मंदिर मौजूद है, जिस मंदिर को कमलनाथ महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है, पुराणों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि इस मंदिर की स्थापना स्वयं लंकापति रावण ने की थी यही वह स्थान है जहां पर लंकापति रावण ने अपना शीश भगवान शिव जी को अग्नि कुंड में समर्पित किया था, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव जी ने रावण की नाभि में अमृत कुंड स्थापित किया था, इस स्थान की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां भगवान शिव जी से पहले रावण की पूजा आराधना होती है क्योंकि यहां की मान्यता अनुसार ऐसा कहा जाता है कि शिव जी से पहले अगर रावण की पूजा नहीं की जाती तो पूजा सफल नहीं होती है।
पुराणों में उल्लेख एक कथा के अनुसार एक बार लंकापति रावण भगवान शिव जी को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत पहुंचा था और वहां पर रावण भगवान शिव जी की तपस्या में लग गया, रावण की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव जी ने रावण से वरदान मांगने को कहा था, तब रावण ने भगवान शिव जी को अपने साथ लंका चलने का वरदान मांगा था, तब भगवान शिव जी लिंग के रूप में उसके साथ जाने को तैयार हो गए थे परंतु रावण के साथ जाने से पहले उन्होंने यह शर्त रखी थी कि अगर उसने शिवलिंग कहीं पर रखा तो वह वहीं पर स्थापित हो जाएंगे, कैलाश पर्वत से लंका का मार्ग काफी लंबा था, बैजनाथ गांव के समीप किसी कारणवश रावण को उस शिवलिंग को किसी अन्य व्यक्ति को सौपना पड़ा था, रावण ने उसको यह स्पष्ट निर्देश दिया था कि उस शिवलिंग को जमीन पर ना रखें जैसे ही रावण उस व्यक्ति की दृष्टि से ओझल हुआ तो उस व्यक्ति ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया था और वह खुद गायब हो गया था, जब रावण वापस आया तो उसने देखा की शिवलिंग जमीन पर पड़ा हुआ है और वह आदमी भी मौजूद नहीं है, रावण ने शिवलिंग उठाने की कोशिश की तो वह शिवलिंग अपने स्थान से बिल्कुल भी नहीं हिला, तब रावण को अपनी गलती का एहसास हुआ था और उसने दोबारा भगवान शिव जी की तपस्या की थी।
रावण एक दिन में भगवान शिव का 100 कमल के फूलों के साथ पूजन करते थे ऐसा करते करते रावण को साढे 12 साल बीत गए थे जब ब्रह्मा जी को लगा कि रावण की तपस्या सफल होने वाली तो है तो उन्होंने तपस्या भंग करने के उद्देश्य से पूजा के समय एक कमल चुरा लिया था, जब पूजा के दौरान एक कमल का पुष्प कम पड़ा तो रावण ने अपना शीश काटकर भगवान शिव जी को अग्नि कुंड में समर्पित कर दिया, भगवान शिव जी रावण की इस कठोर तपस्या से अति प्रसन्न हुए, तब उन्होंने वरदान के रुप में रावण की नाभि में अमृत कुंड की स्थापना की थी और इस स्थान को कमलनाथ महादेव के नाम से घोषित किया था, इस मंदिर में रावण की पूजा के बाद ही भगवान शिव जी की पूजा आराधना की जाती है यहां पर रावण की पूजा जब तक संपन्न नहीं होती, तब तक भगवान शिवजी की आराधना पूरी नहीं होती है।