इस प्राचीन मंदिर में माता रानी करती हैं अग्नि से स्नान, मां भक्तों की तकलीफें करती है दूर
हमारे देश भर में ऐसे बहुत से मंदिर मौजूद हैं जिनके चमत्कारों के आगे वैज्ञानिकों ने भी अपने घुटने टेक दिए हैं, अक्सर इन मंदिरों के अंदर कोई ना कोई चमत्कार होता रहता है, जिसके प्रति लोगों का अटूट विश्वास देखने को मिलता है, ऐसा बताया जाता है कि इन मंदिरों में भक्त आकर अपनी सभी परेशानियों से मुक्ति पाते हैं, वैसे देखा जाए तो हमारे देश में देवी मां के बहुत से मंदिर मौजूद हैं और इनकी अपनी अपनी खासियत बताई गई है, आज हम आपको मां भगवती के अनेक मंदिरों में से एक ऐसे चमत्कारिक मंदिर के बारे में जानकारी देने वाले हैं जिसका रहस्य अभी तक विज्ञान भी नहीं जान पाया है, ऐसा बताया जाता है कि इस मंदिर में माता रानी अग्नि से स्नान करती हैं।
दरअसल, आज हम आपको मां भगवती के जिस चमत्कारिक मंदिर के बारे में जानकारी दे रहे हैं यह मंदिर मेवाड़ की महारानी के नाम से प्रसिद्ध ईडाणा माता मंदिर है, मेवाड़ के सबसे प्रमुख शक्तिपीठों में से एक ईडाणा माता मंदिर माना जाता है, जिसकी ख्याति पूरे मेवाड़ में फैली हुई है, ऐसा कहा जाता है कि यहां पर मां शक्ति स्वयं अग्नि प्रज्वलित करके स्नान करती है, इसके अतिरिक्त यह भी मान्यता है कि यहां पर लकवा से पीड़ित व्यक्ति जो भी दर्शन करने के लिए माता के दरबार में आता है उसकी तकलीफ माता रानी दूर करती है।
मां भगवती इस मंदिर में इडाणा देवी के नाम से पूजी जाती है, माता रानी का यह प्राचीन मंदिर राजस्थान के उदयपुर से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर बंबोरा गांव में स्थित है, इस मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं और वह माता के चमत्कारों को देखते हैं, इस मंदिर में दर्शन करने के लिए केवल भारत से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी भक्त भारी संख्या में आते हैं, वैसे तो इस मंदिर में रोजाना भक्तों की भीड़ लगी रहती है परंतु नवरात्र के समय यहां पर माता के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या कुछ अधिक ही रहती है, ऐसा बताया जाता है कि उस दौरान माता रानी अपने हर भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी कर देती हैं।
मान्यता अनुसार ऐसा बताया जाता है कि जब माता इडाणा प्रसन्न होती हैं तब उन्हें अग्नि की लपेटे घेर लेती है, माता के इस रूप को सौम्य बताया जाता है, श्रद्धालुओं का ऐसा मानना है कि महाभारत काल से ही माता रानी यहां पर विराजमान है, प्राचीन समय में स्थानीय शासक माता को कुलदेवी माना करते थे, जब भी कोई शुभ अवसर होता है या फिर कोई खास त्यौहार आता है तब उनके वंशज वर्तमान समय में भी यहां पर आकर माता को नमन करते हैं और इस मंदिर की एक सबसे विचित्र परंपरा यह भी है कि माता रानी के दरबार में कोई भी पुजारी नहीं है बल्कि ग्रामीण लोग ही मां इडाणा की सेवा और पूजा अर्चना करते हैं।
इसी अग्नि स्नान की वजह से ही माता का संपूर्ण मंदिर नहीं बन पाया है, माता रानी के दर्शन करने वाले स्थान के पीछे बहुत सारे त्रिशूल लगे हुए नजर आते हैं, ऐसा बताया जाता है कि जिस भक्त की मनोकामना मातारानी पूरी करती है वह इस मंदिर में आकर त्रिशूल अर्पित करता है।