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मोदी सरकार ने वो कर दिखाया जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी, आर्थिक विकास दर में बढ़ोत्तरी

पिछले सप्ताह देश की अर्थव्यवस्था को लेकर अच्छी ख़बर आई है। बढ़ती-पेट्रोल डीज़ल की क़ीमतों की वजह से मोदी सरकार के ऊपर काफ़ी दबाव बना हुआ है। इसी बीच यह भी ख़बरें आ रही हैं कि यूपीए सरकार के दौरान देश का विकास दर बेहतर था। ऐसे में मोदी सरकार को इस ख़बर से यक़ीनन सुकून मिलेगा कि चालू वित्त वर्ष की पहली ही तिमाही में जीडीपी विकास दर अनुमान से कहीं अधिक 8.2 प्रतिशत रहा। आँकड़ों की पड़ताल की जाए तो पता चलता है कि कई मुख्य सेक्टरों में काफ़ी उछाल हुआ है। मसलन मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर 13.5 प्रतिशत दर से बढ़ा है जो इस बात की तरफ़ इशारा करता है कि देश में औद्योगिक विकास रफ़्तार पकड़ रहा है।

नोटबंदी और जीएसटी के झटकों से उबर रही है अर्थव्यवस्था:

कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में भी अच्छा रुझान देखा गया है। कृषि सेक्टर में भी 5.3 प्रतिशत की दर से विकास करते हुए अच्छी सम्भावनाएँ दिखी है। लेकिन सरकार के आलोचक यह भी कह सकते हैं कि बढ़ी हुई विकास दर पिछले साल इसी समय 5.6 प्रतिशत दर के आधार पर ही आज इतनी अच्छी लग रही है। पिछले साल की बात करें तो मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर 1.8 प्रतिशत तक गिर गया था। जबकि कृषि सेक्टर केवल 3 प्रतिशत की दर से बढ़ा था। इससे साफ़ है कि भारत की अर्थव्यवस्था अब नोटबंदी और जीएसटी के झटकों से उबर रही है। विकास दर उसी का नतीजा है।

इसमें कोई शक नहीं है कि पिछले साल जारी किए गए आँकड़ों को लेकर काफ़ी बेचैनी रही। आँकड़े यह बताते थे कि मनमोहन सरकार में अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन बहुत ही अच्छा था। आँकड़ों में यह पाया गया कि यूपीए सरकार के कार्यकाल में दो साल आर्थिक दर 10 प्रतिशत से अधिक रही जबकि पहले कार्यकाल में यह लगातार 8 प्रतिशत से ऊपर ही बनी रही। अब यह कहा जा रहा है कि अर्थव्यवस्था में यह उछाल यूपीए कार्यकाल में उठाए गए नीतिगत क़दमों की वजह से थी या अटल बिहारी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार द्वारा लागू किए गए सुधारों की वजह से था।

वाजपेयी ने विरासत को बढ़ाया आगे:

सच बात तो यह है कि 191 से ही देश की अर्थव्यवस्था लगातार सुधार कार्यक्रमों की वजह से प्रभावित हो रही है। नरसिंह राव ही थे जिन्होंने उस समय मनमोहन सिंह को आर्थिक सुधार लागू करने की पूरी छूट दे रखी थी। इस बात को भी इनकार किया जा सकता कि वाजपेयी ही थे, जिन्होंने कुछ सालों के बाद सुधारों की इस विरासत को आगे बढ़ाया और सुधार कार्यक्रमों को कुछ ऐसे क्षेत्रों में भी ले गए, जिन्हें पहले सुधार के लिहाज़ से वर्जित समझा जाता था। यह वाजपेयी ही थे जिन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के निवेश की पहल की।

अटल बिहारी की स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना एक ऐसी योजना थी जिसने निवेश और रोज़गार को प्रोत्साहन दिया। जब वाजपेयी प्रधानमंत्री थे तो उस समय प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का भी स्वागत किया गया। जिससे ऐसे विश्लेषकों को हैरान भी कर दिया था जो स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठनों के एजेंडे को आगे बढ़ाने में जुटे हुए थे। वर्ष 2004 में डॉक्टर मनमोहन सिंह की प्रधानमंत्री के अवतार में वापसी से कई इकाइयों को यह लगा कि सुधारों को उसी तेज़ी से आगे बढ़ाया जाएगा, जैसे पहले किया गया था।

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