यहां खुले आकाश तले विराजमान हैं एकदंत गणपति, अपने भक्तों की करते हैं रक्षा
भगवान गणेश जी को सभी देवताओं में प्रथम पूजनीय माना जाता है। पार्वती पुत्र श्री गणेश जी की महिमा अपरंपार मानी गई है। ऐसा बताया जाता है कि जिस व्यक्ति के ऊपर इनकी कृपा रहती है, उसके जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं। भगवान गणेश जी के भक्त इनको गणपति, गणेशजी, गणपति बप्पा जैसे कई नामों से पुकारते हैं। गणेश जी को एकदंत भी कहा जाता है, लेकिन क्या आप लोग जानते हैं कि इनको “एकदंत” क्यों कहते हैं? और इनका एक दांत कहां और कैसे टूटा था? आज हम आपको भगवान गणेश जी की एक ऐसी प्रतिमा के बारे में जानकारी देने वाले हैं जो अपने आप में रहस्यमई मानी जाती है। दुर्गम पहाड़ियों पर 30000 फीट ऊपर खुले आकाश में एकदंत गणपति जी विराजमान हैं। यहां पर कोई भी गुबंद नहीं है और ना ही कोई मंदिर है।
जानिये कहां पर स्थापित है एकदंत गणेश जी की प्रतिमा
हम आपको भगवान गणेश जी की जिस प्रतिमा के बारे में जानकारी देने वाले हैं, यह छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में बैलाडीला की ढोलकल पहाड़ी पर स्थित है। भगवान गणेश जी की यहां पर स्थापित मूर्ति समुद्र तल से करीब 3000 फीट की ऊंचाई पर है। भगवान गणेश जी की प्रतिमा के बारे में ऐसा बताया जाता है कि यह प्रतिमा ढोलक के आकार की है, जिसकी वजह से इस पहाड़ी को ढोलकल पहाड़ी और ढोलकल गणपति के नाम से भी लोग जानते हैं।
जानिए गणेश जी एकदंत क्यों कहलाए गए?
ढोलकल गणेश जी के पीछे एक कथा भी बताई जाती है। आसपास के क्षेत्रों में यह कथा प्रचलित है कि भगवान गणेश जी और परशुराम जी का युद्ध इसी पहाड़ी पर हुआ था। जब दोनों के बीच युद्ध हो रहा था तो उस दौरान भगवान गणेश जी का एक दांत टूट गया था। भगवान गणेश जी का एक दांत परशुराम जी के फरसे से टूटा था, इसी वजह से पहाड़ी के नीचे के गांव का नाम फरसपाल रखा गया है। इस घटना को यह पूरा संसार आखिर तक याद रखें, इसी बात को ध्यान में रखते हुए छिन्दक नागवंशी राजाओं ने पहाड़ी पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की थी।
ऐसा माना जाता है कि यहां पर भगवान गणेश जी की प्रतिमा का निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था। नाग वंश के दौरान यह प्रतिमा यहां पर स्थापित की गई थी। आपको बता दें कि गणेश जी की इस प्रतिमा के ऊपरी दाएं हाथ में फरसा, ऊपरी बाएं हाथ में टूटा हुआ एकदंत, नीचे दाएं हाथ में अभय मुद्रा में अक्षमाला धारण किए हुए तथा नीचे बाए हाथ में मोदक धारण किए हुए आयुष के रूप में भगवान गणेश जी यहां पर विराजे हैं। आखिर इतनी ऊंचाई पर भगवान गणेश जी की प्रतिमा कैसे पहुंची? इस बारे में कोई भी जानकारी पता नहीं लग पाई है।
एकदंत गणेश जी रक्षक के रूप में पूजे जाते हैं
यहां के स्थानीय आदिवासी एकदंत गणेश जी को अपना रक्षक मानते हैं और यहां के लोग इनको रक्षक के रूप में ही पूजते हैं। आपको बता दें कि यहां के स्थानीय लोगों का ऐसा कहना है कि ढोलकल शिखर के पास स्थित दूसरे शिखर पर देवी पार्वती और सूर्य देव की भी प्रतिमा है परंतु यह लगभग 15 वर्ष पहले ही चोरी हो चुकी है। यहां पर पहाड़ी तक पहुंचने का मार्ग बहुत ही कठिन माना गया है क्योंकि जंगली जानवरों का डर बना रहता है, लेकिन जो भक्त एकदंत गणेश जी के दर्शन करने के लिए जाता है, उसको कोई भी जंगली जानवर किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाता है।