भगवान को भोग में चढ़ाएं ये सामग्रियां, भगवान प्रसन्न हो कर करते हैं भक्त की हर इच्छा पूरी
सनातन धर्म में देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना में भोग लगाने का विधान है, जिसके अनुसार पवित्र खाद्य पदार्थों को भगवान को चढ़ाकर उसे लोगों में वितरित किया जाता है। मान्यता है कि इससे भगवान प्रसन्न होते है और अपने उपासक पर कृपा बनाए रखते हैं। वैसे तो श्रद्धा से जो भी भक्त अर्पित करते हैं वो भगवान को स्वीकार्य होता है, पर इसके साथ धर्मग्रंथों में सभी देवी देवताओं के पसंद के भोग के विषय में बताया गया है, माना जाता है कि देवी-देवताओं को उनके प्रिय भोग चढ़ाने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है, पर अधिकांश लोगों को देवताओं के प्रिय भोग के विषय में अधिक जानकारी नहीं है, ऐसे में वो जानकारी के अभाव में ऐसा नहीं कर पाते हैं। अगर आप भी अब तक इस विषय से अंजान हैं तो आज हम आपको अपने लेख के माध्यम से इसके बारे में बताने जा रहे हैं, तो चलिए जानते हैं किस देवता को कौन सा भोग प्रिय है..
गणपति को प्रिय है मोदक
गणपति बप्पा को विघ्नहर्ता कहा गया है, क्योंकि इनकी पूजा अर्चना से लोगों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और कोई भी कार्य बिना किसी विघ्न के सम्पन्न होता है। वहीं शास्त्रों के अनुसार, भगवान गणेश को प्रसन्न करने का सबसे सरल तरीका है उन्हे उनकी पसंद का भोग चढ़ाना.. जो कि मोदक है। पद्मपुराण के अनुसार मोदक अमृत से निर्मित है और माता पार्वती को ऐसा दिव्य मोदक देवताओं से प्राप्त हुआ था।
पौराणिक कथा के अनुसार अपनी माता पार्वती से मोदक के गुणों का वर्णन सुनकर गणेश जी को मोदक खाने की इच्छा हुई.. ऐसे में माता पार्वती ने गणेश जी के साथ अपने दूसरे पुत्र कार्तिकेय के लिए भी मोदक बनाये और उन मोदक को दोनों में बराबर बांटने का विचार किया ताकि उस मोदक को खाकर दोनों भाई कला और साहित्य में निपुण हो सके। परन्तु गणेश जी और कार्तिकेय मोदक आपस में बांटना ही नहीं चाहते थे। ऐसे में देवी पार्वती ने एक युक्ति निकाली और उन्होंने दोनों के बीच एक प्रतिस्पर्धा करायी और कहा कि जो भी उसका विजेता होगा सारे मोदक उसी को मिलेंगे। दरअसल पार्वती जी ने उन दोनो को ब्रह्मांड का चक्कर लगाने के लिए कहा जिसमें जो भी परिक्रमा कर देवी पार्वती के पास जल्दी पहुंचेगा वही विजेता होगा। ये सुनकर कार्तिकेय जी ने अपना वाहन मयूर उठाया और उस पर निकल गए। पर गणेश जी वहीं खड़े रहे और उन्होंने चतुराई दिखाते हुए अपने माता-पिता भगवान शिव और देवी पार्वती की परिक्रमा की और कहा कि मेरे लिए मेरे माता-पिता ही समस्त ब्रह्मांड है। ऐसे में गणेशजी की बुद्धिमता देख देवी पार्वती अत्यधिक प्रसन्न हुई और उन्होंने सारे मोदक उन्हें दे दिए। इस कथा के अनुसार तभी से गणपति को मोदक चढाने की प्रथा शुरू हुई।
वहीं शास्त्रों की माने तो माँ दुर्गा को चावल से बनी कोई भी चीज़ प्रसाद के रूप में अर्पित करना श्रेयस्कर होता है, जैस कि खीर माता को बहुत पसंद है जो कि दूध, चावल और शक़्कर से बनती है। इसके अलावा माता को भोग के रूप में गुड़, मिश्री, शहद या फिर दूध भी चढ़ा सकते हैं। वहीं नवरात्री में कुँवारी कन्याओं को हलवा-पूरी का भोग लगाने से भी माता प्रसन्न होती हैं।
देवी लक्ष्मी को खीर और श्रीफल का भोग लगाने का विधान है, दरअसल ये दोनो धन और समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। दरअसल श्री का अर्थ होता है लक्ष्मी और श्रीफल का अर्थ होता है माता से प्राप्त कृपा। इसलिए अगर आप देवी लक्ष्मी की कृपा चाहते हैं तो उन्हें श्रीफल या खीर का भोग अवश्य लगाएं।
चूकि माँ काली, माँ दुर्गा का ही एक रुप है, ऐसे में इन्हें भी चावल से बनी चीज़ें प्रिय होती हैं। इसके अलावा कुछ विशेष मौकों पर माँ काली को बलि चढ़ाने की भी प्रथा है।
विद्या और कला की देवी सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए किसी भी मौसमी फल या मिठाई का भोग लगाना भी शुभ माना गया है। वहीं आप उन्हे खिचड़ी या खीर का भोग भी लगा सकते हैं।
भोले बाबा को भांग और दूध प्रिय होता है। वहीं सभी प्रकार के मौसमी फल भी महादेव को प्रसाद के रूप में चढ़ाने का विधान । इसके अलावा शिव जी को पंचामृत भी प्रिय है, ऐसे में इनकी पूजा में पंचामृत चढ़ाना न भूलें।
भगवान् विष्णु को पीले रंग से बनी वस्तु विशेष प्रिय है, चाहें वो कोई मिठाई हो या फल।वहीं भगवान श्री कृष्ण को भी विष्णु जी का ही अवतार माना जाता है, जिन्हें श्रीखंड या पेड़ा भी प्रसाद के रूप में अर्पित कर सकते हैं।
वहीं हनुमान जी को लड्डू विशेष प्रिय है, साथ ही उन्हें चना और गुड़ का प्रसाद भी चढ़ा सकते हैं ।
शनि देव, राहु, केतु और माता भैरवी को काले रंग की वस्तुएं प्रिय है। ऐसे में इन्हें काला तिल, उड़द की दाल प्रसाद के रूप में चढ़ा सकते हैं। वहीं सरसों का तेल भी शनिदेव, माँ काली और माँ भैरवी को बहुत पसंद है। इसलिए इनकी पूजा में सरसों के तेल अर्पित करना और इसी तेल में प्रसाद बनाना शुभ माना जाता है।