नवरात्रि में कामाख्या मंदिर के दर्शन से सभी इच्छाएं होती है पूरी, जानिए इससे जुड़ी जरूरी बातें
भारतवर्ष में नवरात्रि का त्यौहार बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है, नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा अर्चना की जाती है, नवरात्रि में लोग मां दुर्गा की उपासना करके अपने जीवन की परेशानियों से छुटकारा पाने की प्रार्थना करते हैं, आप सभी लोग नवरात्रि के दिनों में मंदिरों में भारी भीड़ देख सकते हैं, सभी भक्त माता के दर्शन के लिए बहुत से मंदिरों में जाते हैं और अपनी-अपनी मनोकामनाएं माता से मांगते हैं, नवरात्रि के दिनों में ऐसे बहुत से मंदिर हैं जिनकी अपनी अपनी विशेषता है इन्हीं मंदिरों में से एक कामाख्या माता मंदिर है इस मंदिर को शक्तिपीठों में से एक माना जाता है, चैत्र नवरात्रि में माता दुर्गा की उपासना बहुत ही शुभ माना गया है, सभी भक्त अपनी पूरी भक्ति, विश्वास और निष्ठा के साथ चैत्र नवरात्रि के 9 दिनों तक माता दुर्गा की पूजा अर्चना और उपासना करते हैं और कई लोग ऐसे हैं जो माता के शक्ति पीठ के दर्शन करने भी जाते हैं, कामाख्या माता मंदिर इन्हीं शक्तिपीठ में से एक है जहां लोग माता के दर्शन करने के लिए जाते हैं, शास्त्रों के अनुसार देखा जाए तो कामाख्या माता माता मंदिर की बहुत अधिक महिमा का उल्लेख किया गया है, ऐसा बताया जाता है कि जो भक्त नवरात्रि के दिनों में इस स्थान के दर्शन करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।
पुराणों में कामाख्या माता मंदिर से जुड़ी हुई एक कथा के मुताबिक यह वही स्थान है जहां पर माता सती और भगवान शिव जी ने साथ में कुछ पल व्यतीत किए थे, ऐसा कहा जाता है कि इस स्थान पर माता सती की योनि गिरी थी और यह मंदिर बहुत ही रहस्यमई बताया गया है, इस मंदिर के दीवारों से रक्त निकलता रहता है, अगर आप इस मंदिर के रहस्य और चमत्कार को समझना चाहते हैं तो इसके लिए भगवान शिव और माता सती की कहानी जानना बहुत ही जरूरी है, ऐसा बताया जाता है कि जब प्रजापति दक्ष ने माता सती के सामने भगवान शिव जी का अपमान किया था तब भगवान शिव जी के अपमान को माता सती ने अपना अपमान मानकर अग्नि में कूद गई थी और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए थे, जब भगवान शिव जी ने माता सती का मृत शरीर देखा तो उनको बहुत ही गुस्सा आया, जिसके पश्चात उन्होंने अपने अवतार वीरभद्र को प्रजापति दक्ष का नाश करने के लिए भेज दिया था और भगवान शिव जी माता सती के जलते हुए शरीर को अपने साथ लेकर पूरे ब्रह्मांड में भटकने लगे थे।
भगवान शिव जी माता सती के वियोग में बहुत दुखी हो गए थे और वह माता सती के जलते हुए शरीर को छोड़ने का नाम नहीं ले रहे थे, ऐसी स्थिति में भगवान विष्णु जी ने शिव जी के दुख और क्रोध को शांत करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के जलते हुए शरीर के 51 टुकड़े कर दिए थे और यह सभी 51 टुकड़े धरती के अलग-अलग हिस्सों में जाकर गिर गए थे जो 51 शक्ति पीठ कहे जाते हैं, माता सती की जहां पर योनि गिरी थी वह स्थान गुवाहाटी से लगभग 8 किलोमीटर दूर नीलांचल, काम गिरी पर्वत पर स्थित है, जिसको कामाख्या देवी मंदिर के नाम से लोग जानते हैं, इस स्थान पर माता की कोई भी मूर्ति मौजूद नहीं है, इस मंदिर के अंदर एक गुफा है और उस गुफा में एक किनारे पर एक चट्टान के ऊपर योनि की आकृति उभरी हुई नजर आती है, इस गुफा के अंदर प्राकृतिक झरने की वजह से इसके अंदर हमेशा गीलापन रहता है और यहां चट्टान पर उभरी हुई योनि की आकृति की पूजा होती है, यहां पर देश भर के तांत्रिक साधना और तपस्या के लिए मौजूद होते हैं, माता कामाख्या को मनोकामनाएं पूरी करने वाली माता माना गया है, चैत्र नवरात्रि में भक्त और तांत्रिक अधिक संख्या में आते हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जो भक्त नवरात्रि के दिनों में कामाख्या माता के दर्शन करता है उसकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं।