अध्यात्म

माता के इस मंदिर की भभूत से सारे रोग हो जाते हैं दूर, जानिए चमत्कारिक मंदिर से जुड़ी खास बातें

देश भर में ऐसे बहुत से मंदिर है जहां पर देवी माता के चमत्कार प्रसिद्ध है, भारत में देवी माता के बहुत से मंदिर मौजूद है और सभी की अपनी कोई ना कोई खासियत है जो इनको सभी मंदिरों से अलग बनाती है, अक्सर इन मंदिरों के अंदर किसी न किसी प्रकार का चमत्कार देखने को मिलता है, जिसकी वजह से दूर दूर से लोग इन मंदिरों में दर्शन करने के लिए आते हैं, देश में देवी मां के कई चमत्कारिक मंदिरों में से एक रतनगढ़ वाली माता का मंदिर है, इस मंदिर के बारे में ऐसा बताया जाता है कि यहां की मिट्टी और भभूत में एक चमत्कारिक शक्ति है, मान्यता अनुसार जो कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से बीमार रहता है, अगर वह यहां की भभूत चाट लेता है तो उसकी सभी बीमारियां दूर हो जाती है, सबसे बड़ी खास बात इस मंदिर की मिट्टी की यह है कि इसको चाटते ही जहरीले जीवो का जहर भी कोई भी असर नहीं करता है।

हम आपको देवी माता के जिस मंदिर के बारे में जानकारी दे रहे हैं यह मंदिर मध्य प्रदेश से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर रामपुरा गांव में स्थित है, रतनगढ़ माता का यह मंदिर सिंध नदी के किनारे बना हुआ है, देवी माता का यह मंदिर घने जंगलों के बीचों बीच स्थित है, इस मंदिर में देवी मां की मूर्ति के अलावा कुंवर महाराज की प्रतिमा भी स्थित है, यहां के स्थानीय लोगों के अनुसार ऐसा बताया जाता है कि कुंवर महाराज देवी माता के सबसे परम भक्त थे, इसी वजह से इस मंदिर के अंदर माता की पूजा के साथ-साथ इनकी भी पूजा की जाती है।

रतनगढ़ वाली माता मंदिर की सबसे बड़ी खास बात यह बताई जाती है कि इस मंदिर की मिट्टी में इतनी शक्ति है कि इसको चाटने से सांप, बिच्छू आदि किसी भी तरह के जहरीले जीवों का जहर बेअसर हो जाता है, देवी माता के मंदिर में जो भभूत निकलती है यह बहुत ही सिद्ध मानी गई है, ऐसा माना जाता है कि अगर इस भभूत को पानी में मिलाकर कोई रोगी व्यक्ति सेवन करता है तो इससे उसके सभी प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं।

देवी माता के इस मंदिर में केवल इंसानों का ही इलाज नहीं होता बल्कि पशुओं का भी इलाज किया जाता है, यहां के स्थानीय लोग भाई दूज के दिन पशु को बांधने वाली रस्सी देवी मां के पास रखते हैं इसके पश्चात उस रस्सी से दोबारा पशु को बांध देते हैं इससे पशु को किसी प्रकार की शारीरिक परेशानी है तो वह जल्द दूर हो जाती है, माता के इस मंदिर में भाई दूज के दिन विशेष मेले का आयोजन किया जाता है, इस मेले के अंदर स्थानीय लोगों के साथ-साथ दूर-दूर से भक्त दर्शन करने के लिए यहां पर उपस्थित होते हैं।

देवी माता के इस मंदिर के बारे में ऐसा बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण मुगल काल के दौरान कराया गया था, उस समय युद्ध के दौरान शिवाजी विंध्यांचल के जंगलों में भूखे प्यासे भटक रहे थे तभी उनको किसी कन्या ने भोजन कराया था, यहां के स्थानीय लोगों का ऐसा बताना है कि जब शिवाजी ने अपने गुरु स्वामी रामदास से उस कन्या के बारे में पूछा तो उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर शिवाजी को बताया कि वह कन्या जगत जननी मां दुर्गा थी, तब माता की महिमा से प्रभावित होकर शिवाजी ने यहां पर देवी मां का मंदिर बनवा दिया था, जो भक्त इस मंदिर में अपने सच्चे मन से माता के दर्शन करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।

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