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इस गांव में एक भी नहीं है मुस्लिम परिवार, हिंदूओं द्वारा रखा जाता है मस्जिद का ख्याल

पजांब राज्य के लुधियान जिले से कुछ ही दूरी पर एक ऐसा गांव है जहां पर कई सालों पहले कई संख्या में मुसलमान रहा करते थे। लेकिन बंटवारा होने के चलते इस गांव में रहने वाले मुस्लिम परिवारों को इस जगह को छोड़कर पाकिस्तान जाना पड़ा।

गांव में बनी है मस्जिद

इस गांव का नाम हेडों बेट है और इस गांव में अब केवल हिंदू धर्म के लोग ही रहा करते हैं। इस गांव में एक मस्जिद स्थित है और ये मस्जिद आज भी रोशन है। इस मस्जिद का ध्यान गांव के लोगों द्वारा रखा जाता है और हिंदू धर्म के लोग इस मस्जिद में आकर रोज दीया भी जलाया करते हैें।

हेडों बेट गावं लुधियाना से 45 किलोमीटर की दूरी पर है और इस गांव में  2500 लोग रहा करते हैं। इन  2500 लोगों ने गांव में बनी इस मस्जिद का अच्छे से ध्यान रखा हुआ है और हिंदू होने के बावजूद भी ये लोग रोज इस मस्जिद में आकर साफ सफाई किया करते हैं और मस्जिद को रोशन रखते हैं।

इस गांव में रहने वाले प्रेम सिंह के ऊपर इस मस्जिद को संभालने की जिम्मेदारी है और प्रेम सिंह रोज इस मस्जिद में आकर इसकी सफाई करते हैं और यहां पर शाम के समय दीया जलाते हैं। प्रेम सिंह के अनुसार ये गांव विभाजन से पहले मुस्लिम बाहुल्य गांव हुआ करता था। लेकिन विभाजन होने के बाद इस गांव में एक भी मुस्लिम नहीं रहा है। बंटवारे के समय पाकिस्तान के मीरखपुर में रहने वाले हिंदू परिवार इस गांव में आकर बस गए थे और तब से इस मस्जिद का ध्यान हिंदू परिवारों द्वारा रखा जा रहा है।

प्रेम सिंह के मुताबिक वो इस मस्जिद की सेवा में चार सालों से लगे हुए हैं और गांव के लोग इस मस्जिद की देखभाल के लिए पैसे दिया करते हैं। हाल ही में इस मस्जिद में नया दरवाजा भी लगाया गया है और समय समय पर इस मस्जिद की मसम्मत भी करवाई जाती है। प्रेम सिंह के साथ- साथ उनका परिवार भी इस मस्जिद का ध्यान रखता है और जब प्रेम सिंह किसी काम से इस गांव से बाहर जाते है, तो इनके परिवार वाले इस मस्जिद की देखभाल करते हैं।

गुरुवार को कई संख्या में आते हैं लोग

 

इस मस्जिद में एक मजार बनी हुई है और इस मजार पर गांव के लोगों की काफी आस्था है। हर गुरुवार के दिन गांव के लोग इस मस्जिद में आकर मजार के सामने दीया जलाया करते हैं। इन लोगों का ऐसा माना है कि इस मजार पर दीया जलाने से उनकी हर मनोकामना पूरी हो जाती है और मनोकामना पूरी होने के बाद इस मजार पर आकर चादर चढ़ाई जाती है।

नहीं पता किसकी है मजार

इस गांव के लोगों से जब ये पूछा गया कि ये मजार किसकी है, तो गांव वालों के पास इस सवाल का जवाब नहीं था। दरअसल गांव वालों को इस बात की जानकारी नहीं है कि ये मजार किसी है। वो बस आस्था के साथ इस मजार में जाकर अपना शीश झुकाते हैं।

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