बहुत अजीब है इन नदियों का रहस्य, आंसू और मूत्र से हुआ है इनका निर्माण
ऐसी बहुत सी नदियां मौजूद है जिनके पीछे कोई ना कोई कहानी जरूर छुपी हुई है गंगा नदी के बारे में पुराणों में यह कथा है कि इनका पृथ्वी पर आगमन स्वर्ग से हुआ है वहीं यमुना और सरस्वती नदी के बारे में भी कहानी है कि एक श्राप के कारण से इनको नदी बनकर देवलोक से पृथ्वी पर आना पड़ गया था परंतु ऐसी बहुत सी नदियां और झीलें हैं जिनकी कहानी सुनकर आप हैरान हो जाएंगे इनकी कहानी बहुत ही अजीब है जिसको जानकर आप भी सोचने पर विवश हो जाएंगे दरअसल कथाओं के अनुसार इनकी उत्पत्ति आसुओं और मूत्र से हुआ है इनकी कहानियों के साथ ही कुछ मान्यताएं भी जुड़ी हुई है आज हम आपको इस लेख के माध्यम से इन्हीं नदियों के बारे में जानकारी देने वाले हैं।
सरयू नदी- उत्तर प्रदेश
इस नदी के विषय में आनंद रामायण के यात्रा कांड में उल्लेख किया गया है कि प्राचीन काल में शंकासुर दैत्य ने वेदों को चुराकर समुंदर में डाल दिया था और खुद भी वहीं पर छुप गया था तब भगवान विष्णु जी ने मत्स्य रूप धारण करके उस दैत्य का वध किया था और ब्रह्मा के वेद को लाकर उनको सौंप दिया था उस समय खुशी की वजह से भगवान विष्णु जी की आंखों से आंसू गिरने लगे थे और उन आंसुओं से नदी बन गई जो सरयू नदी कहे जाने लगी यह नदी भगवान विष्णु जी के आंसू से उत्पन्न हुई है जिसकी वजह से इस नदी को बहुत ही पवित्र माना जाता है।
कटसराज सरोवर- पाकिस्तान
हिंदुओं के लिए कटसराज सरोवर एक तीर्थ स्थल माना गया है यह पाकिस्तान के पंजाब में स्थित है पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब देवी सती ने आत्मदाह किया था तब भगवान शिव जी की आंखों से दो बूंद आंसू टपक गए थे एक बूंद आंसू से कटास सरोवर निर्मित हो गया था जो अमृत कुंड के नाम से प्रसिद्ध है और दूसरा आंसू अजमेर में टपका था जहां पुष्कर तीर्थ स्थल बन गया है।
तमस या टोंस नदी- गढ़वाल, उत्तराखंड
इस नदी के बारे में ऐसा बताया जाता है कि महाभारत काल में बभ्रुवाहन पाताल लोक का राजा था बभ्रुवाहन कौरवों की तरफ से युद्ध में शामिल होना चाहता था परंतु श्री कृष्ण जी ने उसे रोक दिया था ऐसा भी बताया जाता है कि जब-जब कौरवों की हार होती थी तब तब बभ्रुवाहन रोने लगता था इसके रोने की वजह से टोंस नदी का निर्माण हुआ था यह नदी आंसुओं से बनी होने की वजह से लोग इस नदी के पानी का सेवन नहीं करते हैं।
रावण पोखर- देवघर, झारखंड
इस नदी के बारे में ऐसा बताया जाता है कि एक बार रावण भगवान भोलेनाथ से लंका चलने की जिद्द करने लगा था भगवान भोलेनाथ ने उसकी जिद्द पूरी कर दी और शिवलिंग के रूप में उसके साथ चलने के लिए तैयार हो गए शिव जी ने रावण से कहा कि अगर तुमने शिवलिंग को एक बार भी जमीन पर रख दिया तो फिर दोबारा इसको उठा नहीं सकते हो, रावण को अपनी शक्ति पर अहंकार था और वह शिवलिंग को लेकर अपने साथ चल दिया इसे देखकर भगवान विष्णु जी ने गंगा से रावण के पेट में जाने के लिए कहा जिसकी वजह से रावण को लघुशंका आ गई थी तब रावण ने शिवलिंग को एक बालक के हाथ में थमाकर स्वयं लघुशंका करने चला गया था जब रावण मूत्र त्याग करके वापस लौटा तो उसने देखा कि जिस बालक को वह शिवलिंग थमाकर गया था उसने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया है और वहां पर कोई भी मौजूद नहीं है तब शिवलिंग उसी स्थान पर स्थापित हो गया था रावण भी शिवलिंग को अपने साथ लंका ले जाने में असमर्थ रहा यही शिवलिंग आज बैजनाथ धाम के नाम से जाना जाता है और यहां एक तालाब है जिसका निर्माण रावण के मूत्र हुआ था और यहां के स्थानीय लोग इसको रावण पोखर के नाम से बुलाते हैं इस पोखर में कोई भी नहीं नहाता और ना ही कोई पूजा पाठ करता है।